मैं भला तुझसे मुहब्बत न करूं तो क्या करूं

मैं भला तुझसे मुहब्बत न करूं तो क्या करूं
प्यार से तेरी इबादत न करूं तो क्या करूं ?

*****

लोग कहते है तुझे , मुझसे मुहब्बत है नही
तुम कहो जग से बगाबत न करूं तो क्या करूं ?

*****

उनसे होती है मुलाकाते हंसी ख़ाबों में फिर

रात की मैं बकालत न करूं तो क्या करूँ ?

*****

दिल दुखाया आज है उसका बिना कुछ जान कर
आज अपनी ही खिलाफत न करूं तो क्या करूं ?

*****

साथ मेरा है निभाती रात ही काली सदा
रौशनी से फिर अदावत न करुं तो क्या करूं ?

*****

लाख चोटे दी ज़माने ने मुहब्बत में तेरी
अपने जख्मों की शिकायत न करूं तो क्या करूं ?

*****

कुछ पलों की दूरियों से डर बहुत लगता मुझे
दूर जाने की वहशत न करूं तो क्या करूं ?

*****

जिस खुदा के नाम से पाया “रिशु”ये साथ है
क़र्ज़ में उसकी इबादत न करूं तो क्या करूं ?


तारीख: 18.06.2017                                    ऋषभ शर्मा रिशु






रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है