मैं ऊँचे गगन को छोड़ ज़मीं की बात करता हूँ

मैं ऊँचे गगन को छोड़ ज़मीं की बात करता हूँ 
मैं हर रोज़ हक़ीकत से मुलाकात करता हूँ 

हर रात काली आंधी मेरे सपने उड़ा देती 
मैं हर सुबह नए सपने की शुरुआत करता हूँ 

दुनिया बदलने की कलम से उम्मीद कब मुझको बस 
कुछ दिलों में पैदा कुछ नए जज़्बात करता हूँ 

कल की सुबह हो आज से बस ज़रा सुन्दर 
बस एक यही कोशिश मैं दिन रात करता हूँ ||


तारीख: 19.06.2017                                    कुणाल






रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है