ख़ुशी में है डूबा की ग़मज़दा है
जाने क्यूं आज फिर ख़ामोश सा है
लब पे लिए फिरता है बेजान सी हंसी
बस रोता है तनहा तो अच्छा दिखता है
दर्द का बयान तो उस आंसू से पूछिए
नज़र तक आता है फिर भी ना गिरता है
दिल तो देर शाम का भटका परिंदा है
फिज़ा में हर ज़ानिब रास्ता ही रास्ता है
"मुन्तज़िर" आये दिन अब दिल्लगी कर जाता है
मेरा जो ये दिल है अब जाने किसका है