मेरी हंसी में तुम मेरी हर एक घड़ी में तुम
मेरी आँख की नमी में मेरी तिश्नगी में तुम ।
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आवारगी में तुम मेरी हर शायरी में तुम
मेरी ज़िन्दगी में तुम मेरी हो आशिकी में तुम ।
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कैसे भुला दूँ तुझको पता ये मुझको नही
मेरी शायरी के जैसे बसी डायरी में तुम ।
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देखी नही कभी तुमने मेरी बेबसी
माना ये आज सबने हो मेरी बेबसी में तुम ।
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आवारगी का आलम कुछ यूँ हुआ है रिशु
घूमा मैं जिस गली में दिखी उस गली में तुम ।