तकदीर का रोना रोते हो तकदीर से ही मर जाओगे
मिट्टी की बनी इस कश्ती में कितनी दूर तुम जाओगे
ये किसको तुम बहलाते हो कि मुझको ये तो करना था
इन खोखले फ़र्ज़ के दावों में तुम कैसे झूठ छुपाओगे
किस नाम की बातें करते हो किस नाम का जीना जीते हो
ऊपर उसकी महफ़िल में तुम किसका नाम सुनाओगे
फैसला जब वो करता है तो दर्द जोर से उठता है
जांचती उसकी नजरों से कैसे तुम रूह बचाओगे