
कुछ ज़ख्म थे रहे कुशादा अब नासूर है
जिस पर तू हवा की लगती महज़ रवानी है
महफूज़ रखे थे वो पन्ने पर अब सब कोरा है
जिस पर लिख रही तू प्यार की कहानी है
एक नाचीज़ है, जो मानिन्दे ताबीज़ है
जिस पर खुदा की हो रही बस मेहरबानी है
वफ़ा की कसमें खाते हो, बहुत देखा है ये
बेवफ़ाई होती नही बस खेलती ये जवानी है