आज मजबूर है पर इतने भी नही
अपने हालात बुरे इतने भी नही
थे सजे चंद ख्वाब इन निगाहों में कभी
बह निकले आज पलको में रुके भी नही
मौसमो की खता में रुठे जो पत्ते
सूखे जो इक दफा वो खिले भी नही
दो कदम के थे वो हमकदम हमसफर
वो मिरे तो दीवाने बने भी नही
चाल धीमी सही मंजिले न मिली
अलविदा कह कभी हम मुड़े भी नही
झुके नहीं, रुके नहीं...फ़ैसले जो रहे
थे इमां पर हमारे बिके भी नही
हैं हुस्न-ओ-अदा के सदा से हि चर्चे
आशिक़ी इस जहाँ में खता भी नही
खोजती 'प्रीत 'जिनको रही दर ब दर
राह में वो मिले पर मिले भी नही