ता़रात सफर चले, स्वप्न अधखूली पलक में जल गये
पैर के छालों से, आंखों को मिला है सुरूर-ए-काजल
कौन जाने, मेरी चुभन से कांटे हुए भी होंगे लहुलुहान
करता है तो कर नजर मेरा जज्बा, ऐ लहकते आंचल
मंजिल करे तलाश मेरी, रुह दिलकश रास्ते पर राब्ता
और रियाज़ कर मेरी राह बांधने को खनकती पायल
चला हूं निलाम होकर, समंदर से अब प्यास न बूझेगी
बरसने की गुजारिश ले, करता रहा मिन्नतें इक बादल
रास्ते तो हैं हैरां, देख मेरा मोहब्बत-ऐ-सफर का जूनूं
ऐ खुदा, इक रोज ये मंजिलें भी होगी मेरी ही कायल
भटकने की सौदाई जिजीविषा संग सफ़र-ऐ-जुस्तजू
“मस्ती-ए-यायावरी” को फकीर जिये कि जिये पागल