तन मन मेरा महका तो ज़रा

तन मन मेरा महका तो ज़रा
मुझे खुद से मिला तो ज़रा

सोहबत तेरी है चाहत मेरी
उल्फत की गली आ तो ज़रा

इश्क़ है अधूरा ग़ज़ल भी अधूरी
आ तू मुक़्क़म्मल करा तो ज़रा

बहुत हुई तस्वीर से तेरी गुफ्तगूं 
हक़ीक़त में कहीं टकरा तो ज़रा

यूँ ही मान जाएंगे रूठे कुछ अपने
तू इक बार गले से लगा तो ज़रा

बड़ी वफ़ा से निभाई बेवफ़ाई उसने
शिद्दत -ए-वफ़ा का अंदाज़ा लगा तो ज़रा

कायनात झुक जाएगी कदमों में तेरे
तू हौंसला अपना आज़मा तो ज़रा

तक़दीर के फेर में ना पड़ दोस्त
तदबीर तू कोई आज़मा तो ज़रा

दौर-ए- तन्हाई भी होगी रुख़सत
'प्रीत'इक बार दिल से मुस्करा तो ज़रा
       


तारीख: 07.09.2019                                    हरप्रीत कौर प्रीत




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