तूने जो कही थी मन मे वो बात दबी है अबतक
दिन के उजालों के पांव तले रात दबी है अबतक
अछूतों से मतलब की वो बात तो हंसकर करते हैं
कुंठित जहन मे उनके पर जात दबी है अबतक
सुना है हज से लौट आया है हाजी बनकर लेकिन
उसके हाथों मे गरीबों की खैरात दबी है अबतक
इनमे दफन है अभी भी इज्जतो वकार किसी का
इन खण्डहरों मे किसी की मात दबी है अबतक
महीना सावन का आया है वक़्त पर अपने लेकिन
मौसम की बेईमानी से बरसात दबी है अबतक