आँखों में है दो तस्वीरें मेरे वर्तमान भारत की
इक तरफ़ है नजरें,इनायत इक पे हिकारत की ।
भूख ,गरीबी ,झोपड़पट्टी बेबस ओ लाचारी है
दूजे तरफ़ है देखिये मॉल मस्ती व तिज़ारत की ।
लुटती अस्मत,पिटती जनता,और झूठे वादे है
ढाते जुल्म वही है जो खाते कसम हिफाजत की ।
लेकर कर्ज करोडों का ऐश करते हैं बिदेशों मे
जान गवांनी पड़ रही हैं जिन्होंने शराफ़त की ।
नाम बदलने से क्या नजरिया बदल जायेगा ?
इक हमाम मे सब नंगे हैं रहनुमा सियासत की।