ये नज़ारे बदल जाएँगे,तुम कदम मिला के तो चलो
राह में मुस्कराहटों की कलियाँ खिला के तो चलो
कोई दर्द कोई शिकन ऐसा नहीं जिसकी दवा नहीं
अपनी हथेली से मेरे ज़ख्मों को सहला के तो चलो
मंज़िलें कदम दर कदम हासिल होती चली जाएगी
निगाहों को काम-याबी का जाम पिला के तो चलो
तुम ही से सब खुशियाँ इख़्तियार हैं दो जहान की
कायदे से एक दफे खुद को फिर जिला के तो चलो
अब भी आपके भींगे होंठों पे शबनम चमक उठेंगी
अपने हुश्न को तिलिस्मी सा ख्वाब दिला के तो देखो