पावस आई बाँट रही घर घर संदेश।
हरियाली के अंकुर फूट गए। तपिश भरे दिन पीछे छूट गए।।
बिजली कड़की मेघों को आया आवेश।
रक्षाबंधन और हैं कजलियाँ। झमाझम बारिश नहाएं गलियाँ।।
बाढ़ में नदी नें जैसे छितराए केश।
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