कुछ तो ऐसा होता है सिसक रही है भोर।
तम होता तो पड़ता फाँका। आज उजाला घर पर झाँका।।
शाखें- हो रहीं कटखनी है पंछी का शोर।
अदालत अब करती अन्याय। निकलती है पीड़ा से हाय।।
हाँथों की हथकड़ी बनी क्यों रेशम की डोर।
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