कुछ तो ऐसा

कुछ तो ऐसा 
होता है
सिसक रही है भोर।

तम होता तो
पड़ता फाँका।
आज उजाला
घर पर झाँका।।

शाखें-
हो रहीं कटखनी
है पंछी का शोर।

अदालत अब
करती अन्याय।
निकलती है
पीड़ा से हाय।।

हाँथों की
हथकड़ी बनी
क्यों रेशम की डोर।


तारीख: 20.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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