भोर में किरनों ने

पावस के 
मेघ हो गए
भाई मुंह बोले।

राखी बाँध रही
हरियाली है
पेड़ों की कलाई में।
द्वेष भाव में
कुछ नहीं
एक आनंद भलाई में।।

भोर में किरनों ने
धीरे से
घूंघट खोले।

बारिश हुई तो
मंडूक उछल कूद
हैं करते।
ठंडी ठंडी
पुरवाई चले
भीगे गात सिहरते।।

मानो पुलकित
से लगते
गाँव के टोले।
 


तारीख: 20.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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