नींद में वे रहते

नींद मानव जीवन की अहम ज़रूरत है, जिसमे मैं ज़रूरत से ज़्यादा रत रहने के लिए प्रयासरत रहता हूँ। कठिन तपस्या के बाद, नींद के आगोश में जाने के लिए, मैं समय देश, काल या परिस्थिति का मोहताज नहीं रहा गया हूँ। अब नींद मेरे लिए ठीक उसी तरह से सुगम हो चुकी है जिस तरीक़े से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के लिए बेइज़्ज़ती सुगम है।

बाल्यकाल में ही प्रोटोकॉल के तहत, मुझ में संभावनाओं का अकाल देखकर, अध्यापक और मेरे
व्यापक हित में म्यूट पातालवाणी हुई थी कि समाज और देश मेरी निष्क्रियता से ही फलेगा-फूलेगा, मेरी सक्रियता देश के लिए डेंगू , सेल्फी और टाइगर श्रॉफ की फिल्मों की तरह प्राणलेवा हो सकती है। देश और समाजहित में मुझे अपनी सक्रियता का त्याग  पुराने 500 और 1000 के नोटो की तरह करना पड़ा और तभी से मैं निष्क्रियता की नाव को आलस  की पतवार के सहारे आगे बढ़ाकर आराम से  निद्रायापन कर रहा हूँ। यज्ञोपवीत संस्कार के साथ साथ मेरा नींदोपवित संस्कार भी धूमधाम से संपन्न हुआ था।

नींद में गहराई प्राप्त करने के लिए मुझे थकान की चापलूसी नहीं करनी पड़ती , मैं आलस की रस्सी फेंककर ,ज़ब चाहे तब नींद की गहराईयो को बंधक बना लेता हूँ। किसी भी तिथि को, नींद का अतिथि बनने में मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ता है, नीँदलोक का टिकट और रास्ता जल्द ही कट जाता है।

सूचना के अधिकार के चारो और भिनभिनाने वाले "सूचनास्टिक" लोगो द्वारा ज़ब मुझे इस सूचना के हवाले किया गया कि देश के वर्तमान प्रधानमंत्री रात मे केवल 3 घंटे सोते है तो आश्चर्य और ग्लानि का कॉकटेल मेरे शरीर के उचित स्थानों से रिसने लगा क्योंकि मेरे जैसे लोग, 3 घंटे तो छुट्टी के दिन, दोपहर में सो जाते है। एक सच्चा नींद प्रेमी दिन और रात में अंतर नही करता है, वह दोनों को सेवा का समान अवसर और कमीशन प्रदान करता है।

तकनीकी रूप से तो नींद जगत के पुरोधा और पूजनीय श्री कुम्भकर्ण जी सभी निद्रालुओ (निद्रा के श्रद्धालु) के प्रात: स्मरणीय होने चाहिए लेकिन सभी निद्रालुओ के प्रातःकाल में निद्रासन मे लीन होने के कारण कुंभकर्ण जी त्वरित रूप से स्मरित नहीं हो पाते है। नींद जगत में कई वर्षों से ऊंघते हुए अपनी शोभा और आलस बढ़ा रहे एक्सपर्ट्स का मानना है कि कुंभकर्ण जी का स्मरण जाग्रत होकर नहीं बल्कि नींद की गिरफ्त में किया जाए तो ही कुम्भकर्ण जी की कृपा और उनका वाट्सएप नंबर प्राप्त किया जा सकता है।

नींद केवल शारीरिक क्रिया नहीं है बल्कि यह तो  देश का  राजनैतिक और शासकीय स्वभाव भी हैं जिसे सत्यमेव जयते की तर्ज़ और तजुर्बे पर "नींद में वे रहते" कहाँ जा सकता है। सत्ता के महलों में रहने वाले जनप्रतिनिधि शारीरिक निद्रा के लिए भले ही गोली खाते हो लेकिन जनता को गोली देने की आदत के चलते उनकी राजकीय निद्रा इतनी स्थूल और गहरी हो जाती है कि किसान और गरीब के चिरनिद्रा में लीन होने पर भी भंग नही होती है।

जनता के प्रति उदार और कारुणिक भाव से पीड़ित नेताओ ने नींद को बिना ड्यूटी (शुल्क) वाला सोने का आभूषण बना रखा है ताकि उनको अपनी ड्यूटी पूरी करने में आसानी रहे। नेताओ को खुली आँखों से भी नींद का आनंद लेने का वरदान प्राप्त होता है ताकि उन्हें जनता की परेशानी और तकलीफ दिखाई ना दे और उनके दुखो से द्रवित होकर कहीं उनकी करुणा लीक ना हो जाए। 

सरकारी कर्मचारी तो नेताओ से भी दो कदम आगे बरामद होते है क्योंकि सरकारी कर्मचारी तो विभिन्न एप्स के माध्यम से जनता से जुड़े होते है ज़बकि नेता तो 5 साल में एक बार ही जनता से जुड़ने के लिए अपना ब्लूटूथ ओन करते है। जनता के नित्यप्रति संपर्क में आने से सरकारी विभागों के कर्मचारीयो के संक्रामक रोगों से शिष्टाचार भेंट करने का खतरा होता है इसीलिए वो अपनी करुणा का स्तर, अपनी कुशलता के स्तर तक उठा लेते है। सरकारी कर्मचारी अपने कार्यालयीन समय में तन्द्रा और निद्रा का बेहतरीन उपयोग करते हुए टाइम पास और "फाइल फेल" दोनो कर लेते है।

 प्रतिदिन सरकारी कार्मिकों पर निद्रा और तन्द्रा के अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने का दबाव होता है, इसके अलावा कार्य का दबाव तो हमेशा होता ही है उन पर। सरकारी कर्मचारियों की नींदप्रियता का सातवे वेतन आयोग में कोई संज्ञान ना लिया जाना दुख़द है। अगर नींद के क्षेत्र में कोई अर्जुन पुरस्कार या भारत रत्न भविष्य में  दिया जाए तो मैं उसे किसी सरकारी कर्मचारी को देने की अनुशंसा करूँगा क्योंकि उन्ही के भगीरथी प्रयासों से "नींद में वे रहते" सूत्र वाक्य अपनी पवित्रता और स्वीकार्यता बनाए हुए है।
 


तारीख: 07.04.2020                                    अमित शर्मा 









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