सेठ चांदमल एक हाथ में पूजा का थाल और दूसरे हाथ से मोबाईल पर किसी से बातें करते हुए मंदिर की सीढियां उतर रहे थे ।उतरने के बाद ज्यों ही गाडी की ओर मुड़े एक सफाई करते हरिजन से टकरा गए ।
सेठजी गुस्से में आग बबूला होते हुए “ऐ देखकर नहीं चल सकता अछूत कहीं का धर्म भ्रष्ट करके रख दिया ।”सेठजी बडबडाते हुए घर पहुँचे और मुनीम जी से अपने ऊपर और गाडी के ऊपर गंगाजल का छिडकाव करवाया ।
मन ही मन वह हरिजन को भद्दी भद्दी गलियां भी देते जा रहे थे कि –“इन अछूतों का मंदिर के आस-पास प्रवेश निषेध कर देना चाहिए वगैराह-वगैराह ।
”करीब छः सात माह पश्चात एक स्कूटर सवार सेठजी को टक्कर मार गया ।चोटिल सेठजी वहीँ गिर पड़े उनसे उठा भी नहीं जा रहा था ।मंदिर पर आने वाले भक्त आरती की जल्दी में उन्हें अनदेखा करके भागे जा रहे थे ।
सेठजी दर्द से व्याकुल थे और मदद को कोई हाथ आगे नहीं आ रहा था ।इतने में उसी हरिजन व्यक्ति की नजर सेठजी पर पड़ी उसने सहारा देकर सेठजी को उठाया और उनकी गाडी तक उनको संभालकर ले गया ।
सेठजी ने सकुचाते हुए जैसे ही धन्यवाद कहने को मुंह खोलना चाहा ,हरिजन व्यक्ति बोला”क्षमा करना सेठजी आज इस अछूत ने फिर आपका धर्म भ्रष्ट कर दिया ।