हादसा

 

कभी जीवन में कुछ ऐसे छोटे छोटे पल आते हैं जो अपनी गहरी छाप छोड़ जाते हैं I कभी कभी कुछ साधारण से दिखने वाले विकल्प, हमे आइना दिखाते हैं, और बताते हैं की हम किस मिट्टी से बने हैं I समय की रफ़्तार ऐसी है की एक बार बिता पल वापस नहीं आता I दूसरा मौका शायद कभी नहीं मिलता है I लेकिन सवाल ये है, की अगर दूसरा मौका मिल भी जाए, तो हम क्या करेंगे ? क्या हम अपने अंतरात्मा के धरातल पर रहके निर्णय ले पाएंगे? एक ऐसे ही हादसे का मैं आज वर्णन करने जा रहा हूं । बात कई साल पहले की है, सर्दियों के मौसम की I उस धुंधले से कोहरे में हुआ ये किस्सा मेरे जेहन में एकदम साफ़ है I 
सुबह के 6:30 बजे थे और मैं अपने एक मित्र को स्टेशन पर लेने जा रहा था। कुछ आलस था, कुछ वो समय, और कुछ खाली सड़क पर गाड़ी चलाने का नशा, की मैं तेज रफ़्तार से गाड़ी चला रहा था I मैं चौराहे से मुड़ा ही था की तभी एक लड़की मेरी कार के सामने आ गयी I मैंने जोर से ब्रेक दबाए I कुछ देर के लिए कुछ समझ नहीं आ रहा था, दिल ऐसे धड़क रहा था की मानो शर्ट से बाहर निकल जाएगा I खिड़की से बाहर देखने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी I कानो में एक शोर सा था, और दिल में झनझना देनी वाली अशांति I तभी चारों ओर से लोग मेरी तरफ आने लगे, मैं बहुत घबरा गया I मैंने अपने पैरों की और देखा, और सोचा की इन्हे ब्रेक से हटाने में कैसा महसूस होगा I मेरे अंदर जैसे कोई और ही इंसान था, जिसने जबरदस्ती मेरा पैर ब्रेक से हटाया और तेजी से मोटर आगे बढ़ा दीI 
स्याही की तरह उस लड़की का ख्याल मेरे जेहन से उतर नहीं रहा थाI उसकी नीले रंग की फ्रॉक, घर पर राह देखते माँ बाप, मैं चाह कर भी उसे भूल नही पा रहा था। मेरे अन्दर जैसे कोई और इनसान अब मुझे जगा रहा था। और अंत में, हार मानकर, मैंने अगली लाल बत्ती से गाड़ी वापस घुमा ली और पीछे से चौराहे पर पहुंचा, अपने आप को दूसरा मौका देने के लिए।
वहा काफी भीड़ जमा हो गई थी। मैं कार से उतरा और अनभिज्ञ बनते हुए भीड़ में घुलने की कोशिश करने लगा। लोगों ने बताया की काफी तगड़ा एक्सीडेंट हुआ है, कोई और कह रहा था की आज दुर्घटना का दिन लगता है, अभी अगले ही चौराहे पे एक और लड़की का मामूली सा एक्सीडेंट हुआ है। नजाने किस कश्मकश में, मैं भीड़ को चीरता हुआ आगे जा पहुंचाI लड़की के सिर से काफी खून बह रहा था, उसकी सफ़ेद ड्रेस की बाह पूरी तरह लाल हो चुकी थी। लेकिन लोग कुछ करने की जगह उसका वीडियो बना रहे थे I इसके आगे जो हुआ वो शायद मैंने नहीं, मेरी अंतरात्मा ने किया, या शायद उस इंसान ने किया जिसने मुझे गाडी मोड़ने पर मजबूर किया था I मैंने तुरंत लोगों की मदद से उसको अपनी गाड़ी में बैठा दिया I फिर एक आदमी को साथ लेकर पास के ही एक प्रतिष्ठित नर्सिंग होम में गया I वहां उसे  स्ट्रेचर पर डालकर, नर्सिंग स्टाफ इमरजेंसी की तरफ ले जाने लगा। एक्सीडेंट केस होने की वजह से अस्पताल वालों ने तुरंत ही पुलिस को सूचित कर दिया I पुलिस का नाम सुन कर मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। कानो में वो शोर फिर से गूंजने लगा 
"आपकी कार से एक्सीडेंट हुआ है?" हलकी सी आवाज़ आयी I सामने नर्स खड़ी थीI
"जी क्या?" मैंने सकपका के पूछा 
"आपकी कार से एक्सीडेंट हुआ?" उसने फिर पूछा, कुछ बेपरवाह लहजे में I उसकी नजरे उसकी हाथ पर रखे पेड पर थी I मेरी हां या ना उसके लिए सिर्फ एक औपचारिकता थी जिसे पूरा करके वो घर जा सकेI
"नहीं, मैं तो इसे लेकर आया हूं।" मैंने हिम्मत जुटा के बोला I कही ये मेरे चेहरे पे आता पसीना, मेरी आखों मैं तैरती घबराहट पढ़ न ले!! उस दिन मुझे समझ आया की मैं झूट अच्छा नहीं बोलता I
"अच्छा! आप इसके घरवालों को बुला ले और रिसेप्शन पर जाकर फॉर्म भर देंI" नर्स ने कहा  

लड़की के मोबाइल में होम करके एक नंबर फीड था I मैंने उस पर फोन किया और बताया की उनकी बच्ची का मामूली सा एक्सीडेंट हो गया है और वह फला नर्सिंग होम में है I मुझे आशा थी की लड़की का पापा आकर नर्सिंग होम का खर्चा दे देगा, इसलिए मैंने ₹5000 रिसेप्शन पर जमा करा दिएI 
तभी मुझे अपने मित्र का ख्याल आया जिसे स्टेशन लेने मैं निकला था I मोबाइल देखा, तो ५० मिस्ड कॉल्स! मैंने तुरंत उसे कॉल किया और परिस्थिति समझायी I वो बेचारा स्टेशन पर मेरा इंतज़ार कर रहा था I क्युकी वो शहर से अपरिचित था, मैंने उसे अस्पताल ही आने को बोल दिया I अब सोचता हूँ तो लगता है ऐसा मैंने उससे ज्यादा अपने लिए किया था I इस मित्र की खासियत थी की ये विषम परिस्थिति में भी वातावरण को हल्का बना देता है। और इस लम्हे में मुझे सहारा चाहिए था I

मित्र के आने पर मैंने उसे पूरी घटना की जानकारी दी I 
"आज फंसे हो बेटा! यह तुम्हारा नहीं तुम्हारी कुंडली का दोष हैI लेकिन घबराओ मत ! जब तक लड़की ना पहचान ले तब तक यह कहो कि मैंने कुछ नहीं किया।" वह मंद मुस्कराते हुए बोला I डर शायद उसे भी लग रहा था, पर मेरी खातिर उसने मज़ाक का मुखौटा पहना हुआ था I

थोड़ी देर में लड़की के पिताजी आ गएI मेरी आशा के विपरीत वह गरीब से दिखाई दे रहे थे। 
पूरी परिस्थिति मालूम चलने पर वह मुझे बोले 
"आप बहुत ही सज्जन आदमी है, नहीं तो कौन ऐसा करता है।"
"हमारी अच्छाई का तो इसे बाद में पता चलेगा।" मेरा मित्र धीरे से मेरे कान में बोला 

कुछ देर बाद, डॉक्टर लड़की का परीक्षण करके बाहर आ गए और बोले की सिर में काफी चोट आई है I ऑपरेशन करना पड़ेगा, आप लोग रिसेप्शन पर ₹25000 जमा करा दें और यह दवाइयां खरीद लाए। यह कह कर उसने मेरे हाथ में एक पर्चा थमा दिया। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से पिताजी की तरफ देखा। बच्ची के पिता ने मेरे हाथ पर 500रुपये रख दिए और हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाते हुए बोले: 
"इस समय तो मेरे पास बस यही पैसे हैं I बेटा तुम हमारी मदद कर दो I मैं पाई पाई जोड़ कर तुम्हे बाद में दे दूंगा।" 
"लगता है पिताजी बारात में आए हैं।" मित्र फिर धीरे से चुटकी काटी
"कोई बात नहीं I मैं जमा कर देता हूं, बाद में देख लेंगे। " मैंने पिताजी से कहा I मैंने अपना डेबिट कार्ड रिसेप्शन पर दे दिया। पिछले पांच घंटो में पहली बार कुछ अच्छा महसूस किया I लेकिन तभी सामने से पुलिस आती हुई दिखाई थी !

मेरी हार्टबीट्स बढ़ने लगी। मेरा मित्र फिर धीरे से बोला "बहुत कमीने होते हैं पुलिस वाले I तशरीफ़ तोड़ देते हैं I जब तक राज पर से पर्दा ना उठ जाए झूठ बोलना सालों से।"

पुलिस इंस्पेक्टर देखने में प्राण जैसा लग रहा था I पूरा मसला जानकार वह मेरी ओर बढ़ा I मेरी आंखों में घूर कर बोला 
"हां तो आप लाए हैं बच्ची को अस्पताल में?"
मैंने सिर हिला दिया। 
"वैसे आजकल कोई ऐसा करता नहीं है I चलिए बच्ची के बयान ले लेते हैं। " इस्पेक्टर बोला 
बच्ची के पिता जी ने बताया अभी वह होश में नहीं आई है I उसका ऑपरेशन होना है I होश में आ जाए तो बयान ले लीजिएगाI 
"मुझे भी उस हरामखोर से हिसाब लेना है।" लड़की का पिता कड़वेपन से बोला 
"यह हरामखोर की पदवी तुझे दे रहा है।" मेरा मित्र ने फिर चुटकी ली I
इस्पेक्टर ने धड़ाधड़ सवाल दागने शुरू कर दिए: 
"कहां हुआ एक्सीडेंट ,कितने बजे थे, घटनास्थल का कोई और आदमी आया है।"
मैंने किसी तरह से सारे जवाब दिए I
"ठीक है I आप अपना पूरा पता, मोबाइल नंबर दे दीजिए और यही रुकिए I मैं मौका मुआयना करके आता हूं I फिर आपसे बात करूंगा।" वह बोला I उसके जाने के बाद मैंने ठंडी सांस ली I 
मैंने मित्र से कहा "इसीलिए शायद कोई किसी की आसानी से हेल्प नहीं करता।"

थोड़ी देर में, मैं और मित्र अस्पताल के बाहर आकर टहलने लगे I तभी हमने देखा की वो इंस्पेक्टर मेरी गाड़ी के अगले हिस्से का ध्यान से मुआयना कर रहा है I हम तुरंत वहां पहुंचे I
"आगे डेंट कैसे है? क्या कोई एक्सीडेंट हुआ था? " इंस्पेक्टर ने कड़े स्वाभाव में पूछा I
एक पल को मैं अटक सा गया I इतने डर में जीने से अच्छा तो सच बता दो I कम से कम चिंतामुक्त तो हो जाएंगे I यह सोच कर मैंने हिम्मत जताई, और इंस्पेक्टर को असलियत बताने के लिए अलफ़ाज़ इक्कट्ठे किये I

"यह डेंट तो पुराना है सर!" इससे पहले में कुछ बोलूं, मेरे दोस्त ने बहाना बना दिया I उसने इतनी दृढ़ता से बोला की इंस्पेक्टर ने इसके बाद कुछ नहीं पूछा I

बाद मे, डॉक्टर ने बताया की बच्ची का ऑपरेशन शाम 4:0 बजे करेंगे I बच्ची के पिता ने बच्ची का नाम नेहा, और उम्र 12 साल बताई. 
"ठीक है अब आप लोगों में से एक जना रुक जाए और बाकी लोग जा सकते हैं". डॉक्टर बोला 
"आप लोग जा सकते हैं I जब बच्ची होश में आएगी और उसका बयान लिया जाएगा तब आपका यहां रहना अनिवार्य है." इंस्पेक्टर ने जाते हुए कहाI
नेहा के पिता को मैंने अपना नाम और मोबाइल नंबर बताया और कहां अगर हमारी जरूरत पड़े तो हमें कॉल कर लीजिएगा I रास्ते में मित्र ने दिलासा देते हुए कहा 
“बिल्कुल परेशान मत हो I जो होगा देखा जाएगा I” 

नेहा का ऑपरेशन ठीक हो गया और 2 दिन बाद इंस्पेक्टर ने कॉल करके मुझे बुलायाI मैं मित्र के साथ नर्सिंग होम पहुंच गया I हादसे को कुछ वक़्त बीत गया था, पर अंदर से बहुत डर लग रहा था I अगर नेहा ने मुझे पहचान लिया तो?
"अब ठीक हो तो बता सकती हो की उस दिन क्या क्या हुआ ? कैसे हुआ तुम्हारा एक्सीडेंट ?" इंस्पेक्टर ने नेहा से पूछा, और मेरी तरफ देख कर बोला "क्या इन सज्जन को जानती हो "
"नहीं मैं इन्हें नहीं जानती." नेहा ने कहा 
मैंने दिल पे जैसे किसी ने मरहम लगा दिया हो I मैंने ठंडी सांस ली. 
"किससे हुआ था तुम्हारा एक्सीडेंट ? कार से ट्रक से या किस चीज से. " इस्पेक्टर ने फिर पूछा I मेरी हालत फिर खराब हो रही थी I दिल धड़क रहा था, सोच रहा था जहां नेहा ने कार का नाम लिया वह इस्पेक्टर मुझे पकड़ लेगा. 
"मेरा एक्सीडेंट एक मोटरसाइकिल से हुआ था." नेहा बोली 
मोटर साइकिल का नाम सुनते ही मैं अवाक रह गया I क्या कह रही है नेहा ? ब्लड प्रेशर अब नॉर्मल होने लगा था I
इस्पेक्टर ने पुनः पूछा “ठीक से याद है मोटरसाइकिल थी?” नेहा ने फिर वही दोहराया. 

मुझे अचानक स्मरण हुआ की भीड़ में किसी ने कहा था आज एक्सीडेंट का दिन है I अभी अगले चौराहे पर एक मामूली सा एक्सीडेंट हो चुका है I 
तो क्या मैं गलत चौराहे पर रुक था? 
मैं और मेरा मित्र बाहर आके गले मिले और खूब हंसे I 
“खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना” दोस्त ने कहा I 
सारी बात मुझे समझ में आ गई थी I मेरा एक्सीडेंट अगले चौराहे पर हुआ था और उस लड़की को जरा भी चोट नहीं आई थी I मुझे ये भी याद आया की उस लड़की ने तो नीले रंग की फ्रॉक पहनी थी जबकि नेहा के कपडे सफ़ेद रंग के थे I 
लेकिन मेरे दिल में चैन था कि मैंने अनजाने में एक लड़की का जीवन बचाया, उस की आर्थिक मदद करी I मैंने नेहा के पिता से जाते वक़्त कहा था उन्हें किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो मुझे फोन करे और जो मैंने आर्थिक मदद की है उसको भूल जाएI  नेहा के पिताजी ने मुझसे कहा की "बेटा मुझे समझ नहीं आ रहा मैं कैसे आभार व्यक्त करूं." 
उनकी आँखों में नमी थी और मेरे मन में बहुत सुकून I 
आखिर आज मुझे अपने अंदर एक अच्छा आदमी जो मिल गया था I


तारीख: 06.04.2020                                    विजय हरित









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