शहर

                                           

जाड़े में शाम जल्दी हो जाती है और फिर करीब छह बजे ही घना अंधेरा होने लगता है।हालांकि शहरों में लोग,सड़के,गाड़ियां और कामकाज देर शाम तक चलते दौड़ते रहते हैं।मुनिरका जैसे भीड़भाड़ भरे क्षेत्र में साढ़े छह बजे की शाम भी दिन की तरह उजली थी।होलिजन लाइट्स की सफेद रोशनी हर ओर बिखरी थी मैंने सिगरेट को सुलगाया लंबा कश खींचते हुए माचिस को कुर्ते की जेब रखकर सड़क पर सामने की ओर चल पड़ा।

एक बुजुर्ग जिनका यहां कोई परिचय नहीं था और था भी तो बस इतना कि वो एक बुजुर्ग हैं जो बढ़ती उम्र के चलते अक्सर काफी बाते नाम पता आदि भूल ही जाते हैं। सड़क के दायिने और बनी अपार्टमैंटस में बने एक एक फ्लैट को बड़े ध्यान से देखता आगे बढ़ रहा थे जैसे उन्हें पहचाने की कोशिश कर रहे हों।चेहरे पर उत्सुक्ता और परेशानी आंखों पर से चश्मा बार बार उतारने चढ़ाने का क्रम था।अपार्टमैन्टस में बने हर फ्लैट्स की बुनावट एक जैसी थी नीचे से शीर्ष तक कतारों में एक जैसे काफी फ्लेट्स थे।अपार्टमैंट के लंबे गेट पर दो दरबान खड़े थे जो आने जाने वालों पर पूरी निष्ठा से नज़र रखते थे।बुजुर्ग आदमी को यहां आज से पहले कभी नहीं देखा था मैंने सिगरेट की राख झटकते हुए गुलाटी को आवाज़ दी वो गुलमोहर अपार्टमैंट के पास ही खड़ा था वो मेरी आवाज़ सुनते ही मेरे साथ साथ हो लिया और हम लोग रोज़ की तरह ज़िम की ओर बढ़ गये।


इस बुजुर्ग व्यक्ति को कोई नहीं जानता यहां क्योंकि यह आज ही दस बजे गांव से शहर अपने भतीजे के यहां आये थे।उम्र करीब सत्तर वर्ष सिर के करीब आधे बाल उड़ चुके हैं सफेद कुर्ता पायजामा मेंहदी रंग की जर्सी पर एक भूरी चादर और आंखों पर काला चश्मा दायें हाथ में पारदर्शी लिफाफे में दो एक किलो सेबों को थामे वो चार साढ़े चार शाम को टहलने निकले थे।शहर में लोगों की कोई पहचान तो है नहीं चूंकि उसका भतीजा अभी दफ्तर से लौटा नहीं था अब बहू बच्चे के साथ भी कितनी देर बतियाया जाए दिन में खा पीकर सो भी लिए पर लंबा दिन कैसे बीते सो फल सब्जी लेने के उद्देश्य से वो भतीजे के फ्लैट्स से एक डेढ़ मील दूर निकल लिए फल सब्जी तो शहर से ख़ैर ले ली पर अब वो रास्ता भटक गये हैं।

 

गांव में तो कोई राह भटक जाए या किसी का ठिकाना पूछ ले तो उसे न केवल यथास्थान तक पहुंचाया जाता है बल्कि शर्बत चाय आदि भी पीये बिना एक कदम भी नहीं ढिग सकता पर यहां शहर में ऐसा कहां यहां तो एक हाथ को दूसरा हाथ नहीं जानता केवल नं0 प्लेट फ्लैट नं0 और अपार्टमैंट के नाम से ही ढूंढा जा सकता है सुबह तो बहू रेलवे स्टेशन से ले आयी थी पर अब!कैसे लौटा जाए ?और बुढ़ापे में भूलने की बीमारी अलग!चेहरा उद्गिनता भरा!हालांकि जब ये घर से निकले थे तब कितनी ही बार फ्लैट नं0 व अपार्टमैंट नेम बताया था पर अब उन्हे कुछ याद नहीं और बहू को भी ऐसा आभास न होगा कि ऐसा भी हो सकता है।एक बुढ़ा चेहरा जो उम्र के साथ क्षीण होता जाता है अक्सर गांव में तो दिनचर्या दो चार सगे संबंधियों या अपनी उम्र के लोगों के संग जैसे तैसे कट जाती है पर शहर में तो बुजुर्ग होना अभिशाप के समान है यहां दो एक कमरे के फ्लैट में ही ज़िन्दगी निकल जाती है।यहां कोई किसी को नहीं जानता शायद स्वयं को भी नहीं।इसलिए अक्सर बच्चे या बूढ़े राह भटक जाते हैं पर ये तो यहां आम बात है!बुजुर्ग चलते चलते हांफ रहे हैं दम फूल चुका है थोड़ा चलते है फिर रूककर आशा से पीले फ्लैट्स को निहारने लग जाते हैं।


बुज़ुर्ग व्यक्ति का नाम दीनानाथ है उसने अपनी जेब से अपना परिचय पत्र निकाला और उसे कांपते हाथों से देखता रहा उनकी देह कांप रही थी और चेहरे पर गहरी हताशा आ चुकी थी।उनका हलक सूख गया था वो चलते चलते अब थक कर कांप रहे हैं।ठंडे मौसम में ठंडी हवा से सारा शहर ठिठक रहा है।तीन युवा काॅलेज में पढ़ने वाले बच्चे जो उनके पोता पोती की उम्र के होंगे जिनमें एक लड़की थी जो नाटी थी पर दोनों लड़के लंबे थे।दीनानाथ एक तख्त पर बैठे इधर उधर देख रहे थे उन बच्चों को करीब से गुज़रते देख उन्हें बुलाने के लिए हाथ से इशारा किया। लड़का लड़की पूर्ववत किसी बात में व्यस्त थे तेज हंसी व चेहरों पर तीव्र अट्हास था पर उनमें से लड़के ने उस ओर देखा और चौक कर बोला कहो दादु!क्या हुआ!
बूढ़ा व्यक्ति ने हाथ में पकड़े अपने परिचय पत्र को उसके हाथों में थमाते हुए बोला बेटा मुझे पीले फ्लैट में जाना है!क्या तुम जानते हो?


चेहरे पर निराशा और गहरी वितृष्णा से उस लड़के की ओर वो देखते रहे
पीला फ्लैट?
मतलब!आप क्या कह रहे है?बात को ज़ोर देकर दोहराने लगा क्या मतलब?
अब तक दूसरा लड़का और लड़की भी वहां आ गये थे तेज हंसी की फुहारों को समेटते लड़की ने पहले से मौजुद लड़के से पूछा क्या हुआ?
बूढ़े व्यक्ति को उपेक्षित भाव से देखते हुए
कौन हैं ये बूढ़े अंकल क्या तुम इन्हें जानते हो?चेहरे पर उभरी हंसी को होठों पर समटते हुए धीरे धीरे लड़के के कान में कुछ फुसफुसाने लगी बुजुर्ग अब उस लड़की की ओर ताकतां रहा।
पहला लड़का पहले हंसकर पर फिर गंभीरता से उन दोनों को समझाता हुआ पता नहीं ये क्या पीले फ्लैट पीले फ्लैट कर रहे हैं मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा?बूढ़ा व्यक्ति अभी भी बेचारगी से उन तीनों के मुहं तांकता रहा!
चलो यार लेट हो रहे है?लड़की ने पहले लड़के का हाथ खींचते हुए बोली जैसे उसने उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान तक न दिया हो।


दूसरा लड़का भी!हां हां यार चलो कल भी लेट हो गये थे टयूशन पर!पहले लड़के की आंखों में देखता हुआ कुछ बोला पर बोल न पा रहा था
उसके शब्द टूट रहे थे वो घबराकर बोल भी नहीं पा रहा था।वो हताश आंखों से ऊंची बिल्डिंग में खड़े फ्लैट्स की कतारों की ओर देखते हुए बारीकी से बताने की चेष्टा करता रहा पर एक दूसरे का हाथ खींचते वो तीनों वहां से लौट गये।बुढ़ा पल भर तख्त पर निराश होकर बैठा रहा पर फिर खड़ा होकर दायीं ओर के फ्लैंटस में झांकने लगा पर सभी फ्लैट्स को एक समान पाकर वो पुनः पुराने क्रम से उन्हें देखता व पहचानने की कोशिश करता।


सड़क के दोनों ओर हलचल थी हर चेहरा नया पर भीड़ में कहीं खोया हुआ।शहर में कोई किसी को नहीं और यदि जानता भी है तो अपने मतलब से वरना हर आदमी अपनी ज़िन्दगी में ही मस्त है।बुढ़ा व्यक्ति अपने आयताकार चेहरे पर अंगुलियां फेरता एक बार फिर सड़क की ओर आगे बढ़ने लगता है अभी दस पांच कदम ही चला कि वहीं ठिठक गया उसे लगा कि उसे पेशाब करना है वो यहां वहां देखता है सड़क के दोनों ओर पर उसे कहीं कोई निर्जन स्थान नहीं दिखता जहां पेशाब किया जा सके।सड़क से करीब पचास कदम दूर एक गाड़ी खड़ी मिली है उसे ख्याल आता है कि गाड़ी की ओट में वो मूत सकता है वो पायजामे का नाड़ा बांध रहा था तभी गाड़ी के पास से अपार्टमैन्ट की कुछ महिलाएं बतियाते हुए निकल रही थी तेज तर्रार आधुनिक रंगरूप में रंगी और कृत्रिम सुन्दरता का आवरण ढांपे वो गाड़ी की ओर बढ़ी गाड़ी का दरवाजे को खोलते हुए सहसा बूढ़े को वहां देखकर उसे हिकारत भरी नज़रों से देखते हुए बोली तुझे शर्म नहीं आती कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज कर ?बुढ़्ढ़े !


बुढ़ा व्यक्ति नज़रे झुकाए खड़ा रहा बिल्कुल अपराधी की सी मुद्रा में!
एक औरत ने दूसरी औरत के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा ये वही चोर है जो गाड़ी की बैटरी चुराता है उसके शब्दों में अभ्यस्ता थी जैसे कुशल चित्रकार की एक एक ब्रुश में चित्र निखरता जाता है उसी की सी पूर्णत:कन्फर्म !
मैं तो कहती हूं हो न हो यही है वो बैटरी चोर!


एक अन्य स्त्री जैसे उसे उस बात से कोई सरोकार न हो चलो यार इनका तो यही काम है डेली का ••गुस्से से पहली और दूसरी स्त्री को गाड़ी की ओर ठेलते हुए और पूरा वाक्य पूरा किये बिना गाड़ी में बैठ जाती हैं।गाड़ी चले जाने के पश्चात् वो बुजुर्ग रोती आंखों को पौछता हुआ
आगे बढ़ने लगा सड़क पर उजली लाइट में उसका प्रतिबिंब गहरा और घना होता जा रहा था जो उसके संग संग आगे घिसट रहा था।


समय बीतता जा रहा है पर शहर में आये हर अजनबी अपने अपने घरों में घुसने लगे हैं।शहर के पास का ये इलाका आधुनिक सुख सुविधाओं साज सज्जाओं से लवरेज था।नये किस्म के पार्क और उसमें आधुनिक किस्म के झूले और वहां से निकलते युवक युवतियां अपनी यौन वासनाओं की पिपासा मिटाकर निकलते जोड़े।पर ये तो यहां का रोज़ का ही काम है इसमें नया कुछ भी तो नहीं! ये तो नयी तरह की ज़िन्दगी है जो शहर में सभी को भाती है।


मैं और गुलाटी करीब डेढ़ घंटे के पश्चात् उसी तरफ से लौट रहे थे जहां वो बुजुर्ग व्यक्ति भटक रहा था।मैंने उस बुढ़े थके चेहरे की वेदना को भांपते हुए उनसे पूछना चाहा फिर उनके करीब पहुंचकर उससे पूछा !बाऊजी आप कौन है?
और कहां जाना है आपको!वो बेसुध-सा सामने खड़े रहे मैने फिर ज़ोर देकर पूछा आप कहां रहते है बाऊजी? मेरी बात को इस बार उन्होंने जैसे गौर से सुना हो मेरी आंखों में झांकते हुए उनकी आंखे फिर रो पड़ी।वो सिसक से पड़े उनका गला रूंध गया था स्वर टूट रहे थे मैंने अपार्टमैंट के सामने दरबान से कुर्सी लेकर उनको बिठाया थोड़ा पानी पिलाया और पूछा आप ठीक तो हैं!


वो चुपचाप मुझे देखते रहे और मैं उन्हें! पर वो बुरी तरह सहमे थे जैसे किसी शरीफ आदमी को
अपराधी बनाकर जेल में बिठाकर पूछताछ की जा रही हो।गुलाटी को लौटना था उसने पहले मेरी अंगुलियां दबोची और फिर मेरे कंधे को सहलाते हुए वहां से चला गया।पास खड़े दरबान ने मेरी ओर देखकर कहा ये बाबा यहां भटक गये हैं मैं तो इन्हें दो घंटे से देख रहा हूं पर कोई इनकी नहीं सुन रहा!उसने अपने कानों में छोटी अंगुली को डालकर उसने तेजी से हिलायी पर बोलता रहा।बुढ़ा व्यक्ति बारी बारी से मुझे और उस दरबान को देखता रहा।मैंने हल्के लहज़े में एक बार उनसे फिर पूछा आपको कहां जाना है? मुझे बताइये मैं आपको वहां पहुंचा देता हूं !


गेट पर लंबी गाड़ी रूकी दरबान उस ओर बढ़ गया मैंने कुर्सी पर बैठे बूढ़े व्यक्ति की हथेली को दबाते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि वो घबराये नहीं।उन्होंने सिसकते हुए अपना परिचय पत्र मेरे हाथों में रख दिया और कहा कि उनका भतीजा शशिभूषण यहीं किसी अपार्टमैंट के किसी फ्लैट  में रहता है पर अब उन्हें कुछ याद नहीं और इतना कहते हुए उनकी आंखे फिर भर आई। 


गेट के किनारे यद्यपि दुधिया रोशनी थी पर फिर भी दीनानाथ की दुनिया में घना अंधेरा आ चुका था।सहसा मेरा फोन बजा मैंने पतलून की जेब से निकालते हुए उसे देखा सरला का फोन था मैंने हलो! कहा पर मेरी नज़रे कुर्सी पर बैठे बुजुर्ग पर थी जो मुझे किसी दार्शनिक की भांति अनवरत देखे जा रहे थे।मैने सरला को बताया कि उसे घर पहुंचने में थोड़ी देर लगेगी।सरला के साथ थोड़ी ज़िरह हुई तुम भी न बेकार के पचड़ों में खुद से फंसते हो!छोड़ो चले जाएगे कहीं भी हमारी बला से!हमें क्या!सरला की आवाज़ फोन पर गूंज रही थी मैं उन बुजुर्ग से थोड़ा दूर हटते सरला को समझाने लगा।सरला प्लीज ट्राई टू अंडरस्टैंड
प्लीज! प्लीज!!


बताता हूं! घर आकर पर फोन पर नहीं बता सकता! मेरे शब्दों में गहराई थी दांस पीसता हुआ मैं लगभग चीख रहा था मेरी आंखे फंटी थी पर आवाज़ में कड़ापन बिल्कुल न था।कुर्सी पर बैठी बूढ़ी निस्तब्ध आंखे दूर तैरती रोशनी में उम्मीदें ढूंढ रही थी।मैंने फोन को पतलून में रखना चाहा पर तभी मुझे ख्याल आया मुझे गुलाटी को फोन लगाना चाहिए मैंने कुछ सोचा और फिर गुलाटी को फोन लगाया फोन की घंटी दूसरी तरफ जा रही थी।बड़े गेट से लंबी गाड़ी जा चुकी थी दरबान रजिस्ट्र में ऐंट्री कर रहा था सहसा उसे कुछ याद आया और उस बुजुर्ग की तरफ देखकर ज़ोर से पूछने लगा बाबूजी! चाय पीओगे? उसने बुजुर्ग के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही दूसरी दिशा में दो अंगुलियों से वी का निशान बनाकर हाथ हवा में लहरा दिया।रजिस्ट्री में पैन दबाते हुए वो कुर्सी पर बैठे बूढ़े व्यक्ति के पास आ गया पर दूसरा दरबान अभी भी गेट पर मुस्तैदी से खड़ा रहा।


गुलाटी से फोन पर बात करते हुए मैंने कहा हां जल्दी करो!गाड़ी लेकर आओ जल्दी !हां हां बताता हूं भाई !और हां सक्सैना साहब को भी लेते आना!जल्दी करो बहुत अर्जेंट है।चाय की केतली और दो गिलास लिए हुए एक मरियल सा लड़का वहां पहुंचा।बूढ़ा आदमी चाय पीते हुए खूब सोचता रहा और उसने चादर को समेटते हुए
जेब से अपने भोपाल के घर का पता निकाला और बोला बेटा तुम्हारी बहुत मेहरवानी होगी यदि तुम मुझे भोपाल की बस में बिठा दो मैं वापिस ही लौट जाऊंगा।चाय पीते हुए उसने अपने भतीजे के बारे में बताया कि वो यहां किसी कंपनी में जुनियर कलर्क है पर उसका फोन नं0 पता आदि वहीं घर से लाये हुए बैग में छूट गया।


मैंने दो एक बार उनसे पूछा क्यों न आपके भतीजे के फ्लैट्स को तलाशा जाए पर वो बुजुर्ग चाय की अंतिम घूंट पीते हुए हाथ जोड़कर घर पर ही जाने की विनती करने लगे।अब उनके चेहरे पर से निराशा पहले से कम हो चुकी थी।
दरबान ने चाय के गिलास को खिड़की में अंदर की ओर सरकाते हुए बायें खंभे की लाइट को देखने लगा और दूसरे दरबान के कानों में कुछ खुसफुसाने लगा।


गुलाटी फोन पर बात करते हुए सक्सैना जी के साथ जो अपार्टमैंट के सैकरेट्री भी हैं गाड़ी को मेरे सामने रोका।गुलाटी ने गाड़ी को गेट के पास लगाकर खड़ी की सक्सेना जी भी गाड़ी से बाहर आ चुके थे।मैंने दोनों को बुजुर्ग व्यक्ति के बारे में बताया हम तीनों के हिलते होठ और गहरे हावों भावों को बूढ़ा आदमी हतप्रभ होकर देख रहा था।गेट का दरबान अब तक उस बुजुर्ग से परिचित हो चुका था पर जैसे ही कोई गाड़ी स्कूटर आदि गेट पर आता वो गेट पर लपक जाता।
दो सिगरेट जलाकर मैंने एक गुलाटी की ओर बढ़ा दी स्क्सैना जी सिगरेट नहीं पीते इसलिए वो खड़े खड़े धुएं के घेरों को देखते रहे।गुलाटी ने दो अंगुलियों से चुटकी बजाते हुए राख को नीचे गिरा दिया और सिगरेट को होठों के दायिनी छोर पर रख लिया जैसे ही होठों ने सांस अंदर खींचा स्लेटी धुंआ हवा में लहरा गया।बूढ़े व्यक्ति की तरफ आते हुए गुलाटी ने बूढ़े आदमी से पूछा चचा खाना खाओगे ना!बहुत रात हो गयी है भूख लग गयी होगी!गुलाटी की भारी आवाज़ में खनक थी सक्सैना जी उम्र में ज्यादा बड़े नहीं थे पर उनके चेहरे पर गहरा आत्मविश्वास था किसी ज्ञानी की भांति बुजुर्ग व्यक्ति से बाते करने लगे।
बाबा आप रात को कहां जाओगे कहीं और भटक जाओगे मेरे ख्याल से आपके भतीजे को तलाश लेते हैं या फिर आज रात आप मेरे यहां रूक जाइये सुबह सुबह आपको भोपाल की बस में बिठा देंगे!बुजुर्ग आदमी सक्सैना की हर बात को बड़ी तल्लीनता से सुन रहे थे पर वो जल्द से जल्द भोपाल लौटने का मन बना चुके थे उन्होंने बड़ी मासूमियत से सक्सैना जी के सामने हाथ जोड़कर बस में अभी बिठाने की प्रार्थना करने लगा।गुलाटी ने सिगरेट को नीचे गिराकर उसे जुते से रगड़ दिया।सिगरेट का धुंआ कुछ देर हवा में बहता रहा पर जल्दी ही जर्रे बुझने लगे और धुंए का भी अंत हो गया।अच्छा चचा बताओ क्या खाओगे?गुलाटी ने पास आकर पूछा पर बूढ़े ने दायी बायी देखते हुए भूख न होने की पुष्ठि की।तीनो लोग एक दूसरे को देखने लगे घड़ी में देखा अभी सबा नौ बजे हैं गुलाटी से कन्फर्म करते हुए मैंने उन दोनों को कहा भोपाल की बस सबा दस बजे निकलती है और करीब सुबह पौने छह बजे वहां पहुंचा देती है बाबू जी पक्का जाओगे क्या?


भोपाल के प्रस्थान की बात सुनते ही बूढ़े आदमी की आंखे खिल गयी जैसे सबकुछ ठीक हो गया हो वो तुरंत कुर्सी से उठ गया और चादर को हवा में फैलाकर फिर से ओढ़ने लगा।दरबान ने बीच में रखी कर्सी को एक ओर सरका दिया और रजिस्ट्र में किसी ऐन्ट्री को चैक करने लगा।मैं और सक्सैना गाड़ी में आगे बैठ गये सक्सैना जी ने पिछली सीट पर बुजुर्ग व्यक्ति को बिठा दिया और सीट पर सेब का लिफाफा रख दिया।बुजुर्ग ने इशारे से दरबान को करीब बुलाया और सेब से भरा थैला उसको थमा दिया और कहा बेटा इसे तुम रख लो!तुम लोगों ने मेरी खूब सेवा की है मैं आप सभी को जीते जी याद रखूंगा।बूढे व्यक्ति की आंखे भरी थी दरबान ने आतुर नेत्रों से देखा और दो एक बार ना ना करते सामान रख लिया।
गाड़ी गेट से बाहर निकल कर सड़क की ओर बढ़ गयी सक्सैना जी और दरबान दौड़ती गाड़ी को देखते रहे कुछ ही देर में गाड़ी सड़क से ओझल होती गयी पर देर तक दोनों के हाथ में लहराते रहे।
 


तारीख: 20.03.2020                                    मनोज शर्मा









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