छोटे शहरों में प्यार करने का स्पेस बहुत कम होता है। न ही मॉल के खंभे होते हैं जिनके पीछे छुपकर मिला जाये और न ही लंबी दूरी की बसें चलती हैं जिसमे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे रहें।
एक दो सिनेमाघर होते हैं लेकिन वहाँ भी जान पहचान वालों के डर से नहीं जा सकते। ऐसा लगता है पूरा शहर खाप वालों ने बसाया हो। छोटे शहरों में प्यार फूलता तो है मगर फलता नहीं। देखो घंटाघर वाले रास्ते से बाइक मत ले चलना चाचा की दुकान रास्ते में ही है उन्होने देख लिया तो ।