वो भी एक सावित्री थी


[इस कहानी का उद्देश्य किसी भी धार्मिक मान्यता को चोट पहुँचाना या किसी भी पौराणिक चरित्र के ऊपर उपहास करना नहीं है। ना ही इसका उद्देश्य किसी की आलोचना करना है। हाल ही में हुई देश में घटनाओं से त्रस्त होकर लेखक ने एक अलग कहानी को जन्म दिया है। इसमें कुछ पात्र हिन्दू मान्यता से जुड़े हैं और कुछ वे हैं जो आजकल चर्चा में हैं। अगर किसी भी वाक्य, शब्द या भावना से किसी को तकलीफ होती है तो हम आशा करते हैं को वो इतनी समझ रखेंगे की ये मात्र एक कहानी है और हम तक अपनी बात पहुंचाएंगे।


 पाठकों से अनुरोध:-


इस कहानी को पढ़ने से पहले कृपया इस निम्नलिखित लिंक पे जा कर एक पौराणिक कथा पढ़ ले।
Savitri aur Satyavaan


ये कहानी पति-वर्ता सावित्री के जीवन से प्रभावित है और इसलिए मैं चाहूँगा कि आप सब उनके बारे में पहले थोडा जान लें। आप में से जो भी सावित्री की काहानी से परिचित है वो भी कृपया एक बार इस लिंक पे ज़रूर जा कर पढ़ें आपको उस नारी की महानता का एक अलग अनुभव होगा।


अब आगे पढ़ें..]


तस्वीरें हमारे जीवन में हुई किसी भी एक क्षण का चित्रण होतें हैं। उस क्षण से अगर आपकी यादें जुड़ी हो तो आपको उस क्षण में हुई हर एक चीज़ याद आ जाती है। सावित्री भी आज अपने हाँथ में अपने एल्बम को लेके बैठी थी। उसकी हर एक याद,उसके परिवार की हर एक याद, सब कुछ हाँथो में रखा हुआ था आज। जब भी वो एक तस्वीर से दूसरी तस्वीर को देखती उन तस्वीरों में कैद हुआ हर एक पल उसके सामने चरितार्थ होता था। कुछ तस्वीरों में खुशियों के पल कैद हुए हैं, किसी में वो छुई अनछुई यादें हैं जिनमें हम दुखी थे। कुछ तस्वीरों ने उन पलों को संजोया है जिनमें कुछ साफ़ तो पता नहीं पर आगे आने वाले जीवन के संकेत हैं। हम सब के पास ऐसी ही न जाने कितनी ही तस्वीरें होतीं हैं जिनमें हम ऊटपटांग सी हरकतें करते हुए नज़र आते हैं। उन तस्वीरों को देखो तो गुस्सा आता है,"इसने मुझे बिना बताए ही फोटो ले ली वरना मैं अपने बाल ठीक कर लेता, थोड़ा और अच्छा पोज़ ले सकता था अपने दांत छुपा लेता।" कुछ ऐसे विचार मन में निरंतर आते हैं।


पर सच तो ये है कि बाद में उन्ही तस्वीरों को देखकर हम सबसे ज़्यादा मुस्कुराते हैं। उन्ही तस्वीरों में छुपी रहती है ये असलियत कि हम कितने पागल हैं। ऐसी ही कुछ तस्वीरें सावित्री और सत्यवान के पास भी थी। जब सावित्री और सत्यवान ने पहली बार एक दुसरे का हाँथ थामा था, जब उनकी शादी हुई थी और उन्होंने वचन दिया सदैव एक साथ रहने का, एक दूसरी तस्वीर जब सत्यवान ने मुंबई के समुद्र तट पे रेत से घर बनाया था और उन्होंने सोचा था कि एक दिन रेत का नहीं अपना घर बनायेंगे। आखरी तस्वीर, जब सत्यवान ने घर में एक बच्चे की पतलून पहन कर सावित्री की गोद में बैठ कर बच्चा बनने का नाटक किया था, उस दिन उन्होंने सोचा था कि उनके घर में भी एक बच्चा होना चाहिए। ये वो तस्वीरें हैं जो सच्चे तो नहीं पर इनमे हमारे सपने पिरोए हुए होते हैं। अपने भविष्य की, आने वाले कल की। आज माँ बहुत ज़ोरों से रोए जा रही थी और पापा घर से बाहर गए हुए थे आखिर सरकार क्या फैसला लेने वाली हैं ये पता करने। सावित्री की आखें भी गीली थी पर उसने अभी तक हिम्मत नहीं हारी थी। उसे न जाने क्यों एक अलग ही विश्वाश था कि उसके पति को कुछ नहीं होगा। 


हम सब जानते हैं एक पुलिस की नौकरी में बहुत फायदे हैं ऊपर की कमाई, निचे की कमाई वगैरह-वैगरह पर अगर कोई उसी नौकरी में ईमानदार हो और सिर्फ अपनी कमाई पे नियम और कानून के साथ चलना चाहता हो लोग उसे चलने नहीं देंगे। बड़ी मुश्किलें खड़ी करेंगे। आइपीस सत्यवान को भी पुलिस में ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। पिछले कुछ दिनों से हालात अच्छे नहीं थे, घर में भी वो दफ्तर का काम ले के आते थे और सावित्री भी परेशान रहती थी। एक दिन सत्यवान घर नहीं लौटे, सावित्री ने बहुत फ़ोन किए पर कोई जवाब नहीं मिला।


जब सत्यवान रात भर घर नहीं आए और वो बहुत परेशान हो गयी तब उसे फ़ोन आया, "मेमसाहब! मेमसाहब! सत्यवान सर को अंडरवर्ल्ड वालों ने पकड़ लिया है, अभी अभी हेडक्वार्टर में फ़ोन आया। उन्हें छोड़ने के लिए वो अपराधी जमाल को छोड़ने की मांग कर रहें हैं।"
सावत्री बिना कोई देर लगाए पुलिस हेडक्वार्टर पहुँच गयी। वहां उसने सभी से बात की डीआइजी, ऐसपी, सपी यहाँ तक की वो जिला अधीक्षक के ऑफिस तक भी गयी ये जानने के लिए की उनका क्या फैसला है। किस सरकारी दफ्तर में उसने गुहार नहीं लगाई। पर कहीं से कोई परिणाम नहीं निकला। सबने एक ही जवाब दिया,


"ये फैसला करना मेरा काम नहीं है, सब कुछ सरकार के हाँथ में है।"


दो दिन तक गृह मंत्री के ऑफिस के चक्कर लगाने के बाद उनका आवेदन मिला तो उन्होंने कहा, "देखिए सावित्री जी हम सब ने इस बारे में बात की और सोच रहे हैं। पूरी सरकार सोच रही है। वो जमाल बहुत ही खतरनाक अपराधी है। उसे छोड़ने में खतरा है। पर आप घबराइए नहीं सरकार सोच रही है।"


सावित्री में बहुत मिन्नतें की पर कोई फायदा नहीं हुआ। दिन गुज़रते जा रहे थे और पता नहीं सत्यवान किस हाल में होंगे। अगर उन लोगों की धमकी सच हुई और उन लोगों ने सच में सत्यवान को कुछ कर दिया तो?सोच के ही दिल घबरा जाता था। सावित्री ने गृह मंत्री से जाते जाते एक बात कही,"अगर आपके घर से किसी को अगवा किया गया होता तो क्या आपकी सरकार इतना सोचती? सच कहूँ तो आपकी सरकार सोचती बहुत है। इतना सोचती है कि जब कुछ करने का वक़्त आता है तो भी वे सोचते ही रहते हैं। आज एक हफ्ते हो चुके हैं मेरे पति को अगवा किए अगर उन्हें कुछ हो गया तो इसके लिए आपकी सरकार और उसकी सोच ही जिम्मेदार होगी ना।"


आज भी जब पिताजी वापस आए तो उन्होंने भी वही जवाब दिया, "सब कह रहें हैं सत्यवान को उन लोगों से नहीं उलझना चाहिए था। हम कुछ नहीं कर सकते, वो अपराधी बहुत खतरनाक है। उसे नहीं छोड़ा जा सकता।" इतना सुनकर सावित्री ने आपनी आंखे नीचे कर ली। वो पलंग से उठ खड़ी हुई। जब वो उठी तो उसके हाँथ से फ़ोटो एल्बम निचे गिर गया। पिता जी ने एल्बम उठाया। सावित्री ने कहा, "कोई कुछ नहीं करने वाला पापा। जो भी करना होगा हमे ही करना होगा। किसी का साथ हो या न हो वो अभी तक जिंदा हैं, हर उम्मीद जिन्दा है। मैं उन्हें लेकर आउंगी।"


"क्या बोल रही हो?"


"हाँ जब चीज़ मेरी खोई है तो ढूँढना भी मुझे ही होगा। दूसरों से उम्मीद करना बेकार है।"


"क्या होश में भी हो। अरे वो अंडरवर्ल्ड है, वहां बड़े बड़े लोग जाने से डरते हैं। जान का खतरा होता है और तुम वहां अकेली कैसे जाओगी? मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।"


"नहीं पापा मैं नहीं चाहती मेरी वजह से आपको या किसी को भी कुछ हो।"


"और तुम्हे कुछ हो गया तो?"


"अगर कुछ हुआ भी तो मैं उनके साथ रहूँगी। उनसे मैंने कहा था कि मुझे भी साथ लेकर चलें जिस दिन वो जा रहे थे। मुझे डर लगा ही था कुछ बुरा होने वाला है। पर उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी और वो चले गए। मुझे अकेला छोड़ कर। शायद अब यही मेरी सजा है।"
"सुना तुमने ये क्या कह रही है?" पापा ने माँ की तरफ देखते हुए कहा। "ये सत्यवान को अकेले ढूंढने जा रही है। क्या मतलब है इसका?"


माँ ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने तो जैसे हर उम्मीद ही खो दी थी। बस रोए जा रही थी। पापा कहते रहे, "बेटा रुक जा, रुक जा, जल्दबाज़ी में कोई फैसला न ले। हम सब कुछ करेंगे, मिलके करेंगे।" पर सावित्री के कानों तक कोई बात नहीं पहुंची वो बस चली जा रही थी। उसने फैसला कर लिया था। पापा की बात नसुनने का और सोच विचार कर के कोई फैसला करने समय नहीं था, कहीं सत्यवान की जान अब भी खतरे में थी।


पापा कुछ नहीं कर पाए, उनके हाँथ में रह गई तो बस वो एल्बम। जिसमे सिर्फ तस्वीरें थी। हर तरह की तस्वीर, सावित्री की तस्वीर जब वो छोटी सी एक बच्ची थी, उस वक़्त भी वो कोई कम साहसी नहीं थी। पापा को याद आया सावित्री को वो रोक ही नहीं सकते, कोई उसे रोक नहीं सकता। जब वो ठान लेती थी कुछ करने का तो वो कर के रहेगी, जैसे सत्यवान से विवाह करने की बात भी उसी ने ठानी थी। वो बचपन से ही ऐसी थी। 


आज से 22 साल पहले जब सावित्री कोख में थी तब पापा और मम्मी ने शिव जी की बहुत पूजा की थी। उन्हें एक बेटे की आस थी। थोड़े पुराने विचार के लोग थे। उन्हें एक नहीं 10 बेटों की आस थी। पर जब सावित्री हुई वे सब कुछ भूल गए वो। जब पुरोहित जी ने नामकरण किया तो कहा, "इसमें 10 बेटों जैसा ही सामर्थ्य है मद्रा जी। कभी अपनी पुत्री को कम न आंकिए गा।" उसके बाद जैसे-जैसे सावित्री बड़ी होती गयी वैसे-वैसे अपने रूप और गुण से लोगों का दिल जीतती गयी। कहते हैं जब बेटी बड़ी हो जाए तो पिता की परेशानियाँ बढ जाती है। पर जब सावित्री बड़ी हुई मद्रा जी को कोई चिंता ही नहीं थी। उन्हें बहुत यकीन था अपनी पुत्री पे। और हो भी क्यों न आमतौर पे लड़के लड़कियों को देखकर कुछ ऊटपटांग सी हरकते करते हैं। 


पर सावित्री के हर पहलु के सामने कोई भी लड़का फीका पड़ जाता। कोई भी ऐसा नहीं था जो ये कह सके की हाँ मेरी तुलना सावित्री के रूप या गुण से की जा सकती है। कोई भी लड़का स्कूल या कॉलेज में अपने आप को सावित्री के बराबर समझ ही नहीं पाता था। इसलिए किसी ने उसे कभी परेशान नहीं किया। लेकिन इस बात से जहाँ मद्रा जी को खुश होना चाहिए था वो चिंतित हो गए।


वो ये सोच कर परेशान हो गए कि अगर ऐसा हुआ तो सावित्री की शादी किससे होगी? जब सावित्री की शादी की बात आई तो उन्होंने हर भरसक प्रयास किया कि कोई एक योग्य वर मिले। पर नहीं मिला। अंत में उन्होंने खुद सावित्री से कहा, "बेटा मेरी नज़र में तो ऐसा कोई नहीं है जिसके हाँथ में मैं तेरा हाँथ दे सकूँ। ये ज़िम्मेदारी भी तू ही ले ले। तू खुद ही बता तेरी नज़र में कोई ऐसा जिसे तू पसंद करती हो। उसी से तेरी शादी कर देंगे।" सावित्री के पास भी कोई जवाब नहीं था। असल में उसने भी अभी तक इस बारे में नहीं सोचा था। जब पिताजी ने ऐसा कहा तो सोचना ही था। सावित्री ने अपने जीवन में झाँक के देखा तो कोई भी उसे बहुत पसंद आया हो ऐसा कोई लड़का नहीं था। हर कोई या तो बहुत अच्छा दोस्त था या किसी से बस जान-पहचान ही थी। कोई ऐसा जो उसे पसंद आया हो, उसे भा गया हो ऐसा तो कोई ध्यान में नहीं था।


पर एक जो उसे पसंद आया वो था सत्यवान। उसके कॉलेज के फंक्शन में एक दिन इंस्पेक्टर सत्यवान आए थे। उनका भाषण सुनकर सावित्री को ये एह्साह हुआ था कि ये एक मनुष्य है जो हजारों की भीड़ में सच्चा है। उस दिन हर रोज़ उनके बारे में सावित्री सुनती अखबार या न्यूज़ के ज़रिए। उनके ब्लॉग को भी सावित्री ने फॉलो करना शुरू किया। देखते ही देखते सावित्री उनको बहुत पसंद करने लगी।


एक दिन पेपर में उनका लेख निकला था, पढ़ के उसे बहुत अच्छा लगा। उन्हें मुबारकबाद देने के बहाने मिली और फिर वो लोग हर रोज़ मिलने लगे। अंत में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं थी। दोनों की शादी भी तय हो गयी। सावित्री के पिता तो बहुत खुश थे इस रिश्ते से। पर उसके मामा श्री नारद अग्रवाल ने इस रिश्ते पे अपनी मनाही जताई। उनका कहना साफ था,
"लड़का पुलिस में है। वो भी अफसर बहुत जोखिम भरा काम है। आए दिन ये जो मार-काट, खून-खराबा होता है उसमे पुलिस की नौकरी सुरक्षित नहीं है। सावित्री की शादी इससे नहीं होनी चाहिए।"


पिताजी ने भी सोचना शुरू किया। मामा की इस बात पे सब गौर करने लगे। सबको एक हल्का सा डर तो था ही। पर सावित्री कभी नहीं डरी। उसे मालुम था कि सत्यवान एक सच्चे और इमानदार ऑफिसर हैं, उनकी इसी खूबी से तो उसे प्यार हुआ है। इसे छोड़ कर वो किसी और से शादी कैसे कर सकती है। कोई परवाह नहीं अगर मुश्किलें आएँगी तो साथ मिलकर उसका सामना करेंगे। हर किसी के ह्रदय से डर निकाल कर, सावित्री ने ख़ुशी-ख़ुशी सत्यवान से शादी की थी। उस दिन वो बहुत खुश लग रही थी। पर आज शादी के सिर्फ एक साल ही हुए हैं और इतनी बड़ी विपदा आ गिरी उनके परिवार पे। ऐसा तो किसी ने भी नहीं सोचा होगा।



जब सही वक़्त आए तो सही इंसान भी मिल ही जाता है। सावित्री को भी उसी तरह चित्ता मिल गया। उसने बताया की उसने आखिरी बार उसके पति को धारावी में बैरक वाली गली के पास देखा था। धारावी मुंबई में सबसे बड़ा स्लम इलाका है। वहां आए दिन कोई न कोई तकलीफ होती रहती है। लोग वहां सरकार से बहुत नाराज़ हैं, शहर के इस इलाके को सरकार ने गरीब और गन्दा ही छोड़ रखा है। उनका मानना है जब तक कुछ गन्दा रहेगा तभी उसे साफ़ किया जा सकता है।


ये स्लम यहाँ के पोलीटीशियन के लिए एक अच्छा वोट बैंक था। वहां पे लोगों से मिलकर उसने पूछताछ की तो पता चला कि उस शाम को कुछ लोगों की एक पुलिसवाले हाथापाई हुई थी। लेकिन उन लोगों ने ज्यादा कुछ नहीं देखा। वो डर से अपने-अपने घरों में छुप गए थे। वो लोग जिनसे सत्यवान का झगड़ा हुआ था वो दादा शिवम् के आदमी थे। 


सावित्री ने दादा शिवम् के बारे में सुन रखा था। वो इस इलाके का एक खतरनाक गुंडा था। कुछ लोग उसे अच्छा मानते हैं और कुछ लोग उससे बहुत डरते हैं। वो यहाँ पे धारावी के लोगों को इन्साफ दिलाने के लिए लड़ रहा है। पर इसके लिए वो आतंक का साहारा लेता है। इसी वजह से उसने शहर के दुसरे इलाकों में खलबली मचाई है। वो सिर्फ अमीरों को लुटता है। उसके चलाए धंधो से बहुतों का घर चलता है। 


धारावी के लोग भी आए दिन इस तरह के खून खराबे से परेशान हो चुके थे, पर दादा शिवम् की जंग अब भी जारी थी। सरकार के खिलाफ की इस जंग में हर बड़ा अफसर दादा शिवम् का दुश्मन है। इसी तरह सत्यवान भी उसके रस्ते में आ गए। उसके पास हर तरह के कनेक्शन थे जिससे उसे पता रहता था कि कौन से इलाके में कितना नशा पहुँचाना है, कहाँ कितने पैसो का हिसाब होगा, कौन से इलाके में दंगा उठाना है या बम से धमाका करना है और सबसे ज़रूरी बात किसको कब उठाना या कब मारना है। उसके पास एक लिस्ट हुआ करती है जिसमे कब किसे अपने पास रखना ज़रूरी है और कब ज़रूरी है उसका मरना ये सब लिखा हुआ रहता था। उसकी इसी आदत की वजह से लोग उसे एक दुसरे नाम से भी जानते थे "यमराज" कोई भी उसके इलाके में ज्यादा देर रहने से डरता था। यहाँ तक की चित्ता ने भी मना कर दिया। वो सावित्री के साथ और नहीं चल सकता। सावित्री ने कहा, 


"कोई बात नहीं बस तुम मुझे इस दादा शिवम् उर्फ़ यमराज का पता बता दो अपने पति को मैं खुद ले आउंगी।" चित्ता ने उसे पता बता दिया और कहा,"अगर कोई पूछेगा कि तुम्हे ये पता किसने दिया तो मेरा नाम मत लेना और ये बात जान लो मैं तुम्हे नहीं जानता।"



बिना कुछ सोचे समझे सावित्री वहां पहुँच गयी। उसे ये भी नहीं मालूम था कि वो वहां क्या कहेगी और किस तरह से अपने पति को छुड़ाएगी, पर इस वक़्त उसके दिमाग में केवल सत्यवान का ही ख्याल था। किसी ने सच ही कहा है, कभी कभी प्यार और पागलपन में फर्क करना मुश्किल होता है। दोनों ही समय हम सोचते नहीं और वो कर जाते हैं जो कभी हमने सपने में भी नहीं सोचा होगा।


सावित्री निर्वाणा बार पंहुची। वो जगह औरतों के लिए अच्छी नहीं कहलाती थी। वहां हर तरह की गन्दगी व्याप्त थी और भोली भाली लड़कियों को बेबस करके इस व्यापार में लाया जाता था। पर कहीं इन्ही सब के बीच सत्यवान कैद था। सावित्री जब वहां साड़ी में पहुँची तो लोगों का ध्यान उसपे गया। मर्दों ने अपनी निगाहों से उसकी वो साड़ी भी उतारनी चाही। वहां बड़े-छोटे हर तरह के मर्द थे।


कोई बहुत अमीर बिजनेस मैन लग रहा था, तो कोई कॉलेज का छात्र, कोई जवान तो कोई बूढ़ा, कोई दुबला-पतला तो कोई मोटा। ऐसा लगा वहां हर तरह के मर्द अपनी वासना की प्यास बुझाने जाते हैं। सावित्री ने एक एक करके यमराज के बारे में पूछना शुरू किया। किसी ने उसे सही जवाब नहीं दिया। सब अपना मुह फेर लेते। कुछ ने बताने के बहाने उसे छूने की कोशिश की, किसी ने उसके बांह को पकड़ कर कहा, "एक रात का कितना लोगी?" किसी ने उसकी सामने रूपए निकालते हुए कहा, "यमराज को भूल जाओ वो बूढ़ा हो चूका है, मेर साथ चलो कुछ नया करते हैं।" एक जगह पे एक आदमी साधू की पोशाक में दिखा। उसने सोचा शायाद ये कोई सही जवाब दे। सावित्री ने जब उससे बात की तो उसने कहा, "तुम्हारी सारी पीड़ा और दुःख मैं दूर कर सकता हु। तुम बिल्कुल मत घबराओ।" कहकर उसने सावित्री के सर पे हाँथ फेरा और फिर अजीबो-गरीब तरीके से उसे छूना शुरू किया। सावित्री ने अपने आप को छुड़ाया और वहां से दूर हो गयी। उसे समझ में आ गया ऐसी जगह पे कोई साधू भी किसी का भला नहीं करेगा। जब कुछ नहीं सुझा तो उसने बार के मैनेजर से पूछना शुरू किया। वो बार-बार अपनी नज़रे चुरा रहा था। फिर जब बात बहुत ज्यादा बढ़ गयी तो किसी ने उसके सिर पर एक जोर का वार किया। सावित्री अपने होश खो बैठी। याद नहीं आगे क्या हुआ।


जब आँखे खुली तो उसने सामने एक बूढ़े आदमी को खाना खाते हुए पाया। उसने देखा वो सब लोग जो उसके साथ बार में बदतमीज़ी कर रहे थे वो वहीँ खड़े थे उसे घेर कर। वो किसी अँधेरी जगह में कैद थी और पूरी जगह में शराब की बड़ी बुरी महक आ रही थी। उसने अपनी नज़रें घुमा कर पूरी तरह घर का मुयायना किया तो उसने देखा उसके पीछे सत्यवान बेहोश पड़े थे। उसे देख कर मानो सावित्री की बदन में जान आ गयी। उसने चीख़ कर उनका नाम लिया "सत्यवान" और अपने पैरों से चलने की कोशिश करने लगी। पर हाँथ पैर बंधे हुए थे। वो चाह कर भी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। उसने चिल्ला कर कहा, "मैं आप सब के सामने हाँथ जोड़ती हूँ, प्लीज मुझे अपने पति के पास जाने दीजिए।"


गीड़-गीड़ाने का कोई फायदा नहीं होना था और न हुआ। उस बूढ़े आदमी ने अपना खाना खत्म करते हुए कहा,"मैं ही हु वो जिसे तुम ढूंढ़ रही थी, कहो क्या काम है?" 


"मैं सत्यवान की पत्नी हूँ।" 


"मैं अच्छी तरह जानता हु तुम कौन हो मुझसे क्या चाहती हो ये कहो?"


"जब आप जानते हैं तो इसमें और अब कहने जैसा क्या है? एक पत्नी अपने पति से ज्यादा और क्या चाह सकती है। मैं वही मांगने आई हूँ। मैं इन्हें अच्छी तरह जानती हुं इन्होने कभी कोई बुरा काम नहीं किया। हमने कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। हमे जाने दीजिये।"
"वो नामुमकिन है।"


"क्यों?"


"तुमने कहा इसने कभी कोई बुरा काम नहीं किया, हाँ पर इसका काम ही बुरा है। मरे लिए बुरा है, इसकी वजह से कितने लाखों का नुक्सान हुआ है मेरा तुम नहीं जानती। कई सारे धंधे बंद करने पड़े क्योंकि इसने जमील को पकड़ लिया। लोग डरने लगे इससे और पुलिस से। इसने किसी का तो पता नहीं पर मेरा बहुत कुछ बिगाड़ा है। अब या तो इसको मरना होगा या जमील को वापस आना होगा।" 


"पर इन्होने तो सिर्फ आपना काम किया। गलत कर रहे हो तुम लोग। तुम लोगों को रोका इसमें क्या गलत है? ये सारे धंधे गलत हैं। ये बंद होने ही चाहिए।"


"बंद कर अपना भाषण।" चिल्लाते हुए एक तमाचा जड़ दिया उसने सावित्री के गाल पे। "क्यों सुनने में तकलीफ होती है ना। जब मैं सच कह रही हूँ तो। अगर देखना ही है तो जाके देखो किस तरह से लोग तुमसे डरते हैं, सड़कों पर बच्चो को नशे और बन्दुक की लत लगा दी तुमने और जहाँ देखो कत्लेआम हो रहा है।"


"इन सबके ज़िम्मेदार सिर्फ हम ही नहीं हैं। तुम बड़े घर में बैठे शरीफ-जादे भी हो। पर मुझे एक औरत के मुह लगने की ज़रूरत नहीं ये समझाने के लिए।" 


"क्यों एक औरत तुम्हे लाजवाब कर देगी इसलिए। क्यों झूठ बोल रहे हो अपने आप से इन सबके ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो। ताकत और पैसे लिए अंधे होकर तुमने ही ये सारा माहौल शुरू किया है।"


"चुप हो जा चुड़ैल वरना मार दूंगा।" कहकर एक आदमी हाँथ में एक छुरा लेकर आगे बढ़ा। पर यमराज ने उसे रोकते हुए कहा, "नहीं इसे नहीं मार सकते हम, ये हमारा काम नहीं।"


उसके बाद यमराज ने सावित्री से साफ़ साफ़ कहा, "कौन सही है कौन गलत इसका फैसला करने जायंगे तो सालों लग जायेंगे। मेरा वो काम नहीं है। अभी मैं जो कह रहा हूँ वो ध्यान से सुनो। अपने पति को भूल जाओ। जिसका वक़्त नहीं आया हो उसे मैं मारना नहीं चाहता। यहाँ से जाने का मैं रास्ता बताऊंगा, तुम चुपचाप चली जाओ।"


"नहीं मैं अपने पति के बिना नहीं जाउंगी।"


"तो सड़ो यहीं पर।" कहकर उसने सावित्री को वहीँ कोने में छोड़ दिया। बाकी के लोग जो वहां अब तक बैठे नज़ारा देख रहे थे यमराज ने उन्हें यहाँ से जाने को कहा। सब लोग एक एक करके जाने लगे। कुछ देर में कमरा एकदम खाली हो गया। बचे सिर्फ तीन लोग सावित्री, आधी बेहोशी में सत्यवान और यमराज। देर रात हो चुकी थी और सावित्री ने बहुत कोशिश की सत्यवान को खोलने की और उसे बेहोशी से जगाने की। पर वो नहीं निकल पा रहा था। 


सावित्री समझ चुकी थी कि यमराज उसे या उसके पति को जाने नहीं देगा। पर सावित्री हार मानने वालों में से नहीं थी। उसने फैसला कर लिया था आखरी वक़्त तक वो कोशिश करती रहेगी सत्यवान को यहाँ से छुड़ाने की। और अगर वो सफल न हुई तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, यमराज उसे मार देगा यही ना। सब कुछ सोचने के बाद सावित्री ने एक बार फिर यमराज की ऒर देखा। उसने अपना खाना ख़तम कर लिया था। अब वो रात के अँधेरे को खिड़की से बाहर निहार रहा था। हाँथ में शराब का प्याला था। धीरे धीरे शराब भी पी रहा था। 
सावित्री ने उसके खाए हुए जूठे प्लेट की तरफ देखा, उसे हैरानी हुई और उसने एक सवाल पूछा यमराज से, "क्या आप मांस नहीं खाते?" ऐसा नहीं पूछना चाहिए था किसी अनजान आदमी से पर सावित्री को एक बात का विश्वास हो चूका था कि बाकि जितने भी लोग यहाँ मौजूद हैं उनके मुकाबले यमराज काफी हद तक ठीक था, वो बुरा आदमी नहीं था। इसी धैर्य से उसने ये सवाल पूछा।


"तुम्हे इससे क्या?" यमराज ने रूखे स्वर में जवाब दिया। सावित्री चुप हो गयी। पर फिर उसे लगा की उसने ठीक नहीं किया तो उसने कहा, "हाँ मैं मांस नहीं खाता।"


"लोगों को मारते हो और बातें धर्मराज जैसी?" 


"मैं बस अपना काम कर रहा हुं।" कहकर वो चुप हो गया। कुछ एर तक दोनों चुपचाप बैठे हुए थे। इतने में सावित्री उठी और यमराज के पास गयी। उसने अपनी कलाई को टेबल पर रखे ब्लेड से हल्का सा काटा और उसका रुख उस शाराब की गिलास के सामने कर दिया जिसमे से यमराज शराब पी रहा था। धीरे धीरे खून का एक एक कतरा शराब की गिलास में गिरने लगा। शराब का रंग भी लाल होने लगा। तब तक यमराज को एहसास नहीं हुआ था कि सावित्री ने क्या किया, पर जब उसने पीछे मुड़ के देखा तो उसकी कुछ समझ में नहीं आया वो क्या कर रही है।


उसने चिल्लाते हुए कहा, "ये क्या कर रही है तू? मेरी पूरी शराब गन्दी कर दी।" फिर भी सावित्री ने अपना हाँथ नहीं हटाया। वो वैसे ही अपना खून गिलास में गिराती रही। जब उसका ये हठ यमराज से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने गिलास उठा के फेक दिया। और चिल्ला के पूछा, "ये क्या कर रही हो?"


"आपका खाना हो गया तो आपका मनोरंजन कर रही हूँ। ये देख कर आप इतने हैरान क्यों हैं?"


"क्या बकवास है?"


"अरे आप सोच के देखिए, जब आपने इतने सारे लोगों को मारा, जब किसी का खून किया, जब यहाँ बैठे लोगों के दिलों में अपना डर जगाया, जब भी किसी बच्चे की नस में नशा भरा, माओं और औरतों को विधवा बनाया, यहाँ बम के धमाके किये और खून ख़राब करवाया तब आपने यही तो किया। लोगों का खून ही तो पिया। पिछले कई सालों से आप जोंक की तरह लोगों का खून ही तो पी रहे हैं। और यहाँ खाना खाते वक़्त सिर्फ शाकाहारी खाना खाने का नाटक कर रहे हैं। कह रहे हैं की मैं मांस नहीं खाता। ये किस तरह का ढोंग है। जब बिल्ली सौ चूहे खा ले न तो उसे नाटक नहीं करना चाहिए कि वो शाकाहारी है। आपके लिए ये कोई नयी बात तो नहीं ये लीजिये और पी लीजिये, मेरा खून, मेरे पति का खून, हम सबका खून, पुरे देश का खून। हम सब मरने के लिए तैयार हैं पर ज़रा सोच के देखिये किस वजह के लिए कर रहे हैं आप ये सब। जिस वजह के लिए आपने ये सब किया क्या वो पूरा हो पाया है। आज भी उस गरीब बस्ती के लोग आपकी तारीफों के पुल नहीं बांधते। कोई खुश नहीं है इन हालत से। कोई अंत में साथ नहीं होगा जब इन पापों का बोझ आप उठा नहीं सकेंगे।"


"क्या कह रही हो? लोग इज्ज़त करते हैं मेरी।"


"नहीं लोग डरते हैं आपसे मैं आपको ढूंढ़ते हुए यहाँ तक जिस भी रास्ते से पहुँची वो सब आपका नाम लेने से डर रहे थे और अगर कोई आपकी इज्ज़त करता भी होगा तो बस एक बार उससे सच्चे मन से जवाब देने को कहिए तो वो भी यही कहेगा "मैं नहीं चाहता तुम ऐसा कोई काम करो, मैं नहीं चाहता था इतना कत्लेआम मैं तो सिर्फ शांति चाहता था।" 


कोई भी नहीं चाहेगा किसी ऐसे इन्सांस से दोस्ती करना जिसके साथ वो कहीं आ जा न सके। एक बार आप अपने आपको बदलने का मौका दें आप ज़रूर बदल सकते हैं।"


यमराज चुपचाप उस अँधेरी रात में देखता रहा और सावित्री के शब्द खत्म हो गए। कुछ समझ में नहीं आया उसे क्या करना चाहिए। क्या सावित्री सफल हुई या नहीं कुछ समझ में नहीं आया। बस वो दो मिनट की चुप्पी में सावित्री डर भी रही थी और हिम्मती भी महसूस करा रही थी। 


सब कुछ सुनने के बाद यमराज ने कहा, "मुझे किसी की कोई बात नहीं सुननी। ये मेरा काम है जो मैं करता रहूँगा। तुम चाहे जो भी कहो अगर मैंने इस काम को छोड़ा तो मेरी जगह कोई और आ जायेगा और हालात इससे भी बुरे होंगे। पर तुमसे मैं बहुत खुश हुं, तुमने जो भी कहा वो सच है। मैं जो कुछ कर सकता हु तुम्हारे लिए मैं करूँगा। पर अभी मुझे सोना है। मैं जा रहा हुं। पर जाने से पहले मैं एक बात बता दूँ मुझे सख्त नफरत है उन बच्चों की गेंद से जो बार बार उस खुली रोशनदानी से आ जाती है और अगर कोई वहां से भाग भी जाए तो पता भी नहीं चलेगा। और हाँ वो मेरा शराब की गिलास का कांच भी टूट गया। साफ़ कर दो वरना कोई इससे रस्सी काट कर भी भाग सकता है।"


कहकर यमराज कमरे से बाहर चला गया। सावित्री बस इंतज़ार कर रही थी किसी ऐसे ही समय का। उसने दौड़ कर टूटे हुए गिलास को उठाया और उससे सत्यवान की रस्सी काट दी। उसके बाद उसने जा के रोशनदानी को खोला। उससे एक आदमी के जाने की जगह नहीं थी तो उसने उसके कांच को तोड़ कर और चौड़ा किया। जब वो वापस आई तो उसने देखा कि सत्यवान को घेरे वो सारे लोग खड़े हैं जो उस बार में मौजूद थे। 


शायद उन्हें पता चल गया था ऐसी किसी अनहोनी का। उनमे से एक ने कहा, "देखा मैंने पहले ही कहा था, सरदार कभी रात के एक बजे से पहले सोने नहीं जाता आज क्या हो गया? मुझे तभी शक हुआ।"


सबने सावित्री को देखा तो सब समझ गए। उन्होंने कहा, "अब सरदार की मर्ज़ी है छोड़ने की तो हम क्या कर सकते हैं? पर अगर सरदार के उसूल हैं तो हमारे भी कुछ उसूल हैं।"


"क्या मतलब?" सावित्री ने अकड़ कर पूछा।


"बड़ी हिम्मतवाली है तू, किसी से डर नहीं लगता तुझे, तुम सबने देखा सरदार के सामने भी किस तरह से जवाब दे रही थी।" सबने हाँ में सर हिलाया।


"और अब भी मुझसे मेरी बात का मतलब पूछ रही है। बड़ी तीखी चीज़ होगी ये।" कहते हुए उसने सावित्री को बुरी नज़र से सर से पाँव तक देखा।


 "तो मेरी जान मेरा उसूल ये है कि अगर खुद चलके कोई अपने घर में आए तो उसे ना नहीं कहते।"


कहकर उसने सावित्री के कमर को हाँथ लगाया। सावित्री ने उसे जोर का धक्का मारा। वो दूर जा गिरा। इतने में दुसरो ने भी उसे घेर लिया। सबने उसे एक साथ धर दबोचा। वो इससे पहले की चिल्ला पाती एक ने उसके मुहँ को हाँथ से दबा दिया। सब उसको उठा कर ले गए और बगल के कमरे में पटक दिया। जबरन उसके हाँथ पाँव बांध दिए। उसने लड़ने की बहुत कोशिश की पर उस वक़्त सब व्यर्थ था।


शायद उसकी आवाज़ अगर यमराज सुन लेता तो वो आके उसे बचा लेता पर वो चिल्लाए कैसे मुहँ में तो कपड़ा ठुंसा हुआ था। जैसे जैसे वक़्त बीतता गया वैसे वैसे उन लोगों का शिकंजा और कड़ा होता गया। उन लोगों ने उसे और ज़ोर से पकड़ लिया था। उसका हाँथ पैर और सब कुछ हिला पाना और भी मुश्किल हो गया। अब वो वक़्त था जब सावित्री एकदम निह्साहय और शिथिल हो गयी थी वो हिल भी नहीं पा रही थी। एक-एक करके उन लोगों ने कमरे में आना शुरू किया। दरवाज़े पे बाकी लोग इंतज़ार करते और एक बन्दा वहां पर अपना काम खत्म करता। फिर शर्ट और पतलून पहन कर चला जाता। फिर दूसरा आता और वो भी वैसा ही करता। 


सावित्री ने इस यातना से बचने के लिए अपनी आँखे बंद कर ली थी। जब पहला आदमी आया तो उसने याद किया कि किस तरह सत्यवान और उसने अपनी जिन्दगी के लिए सुहाने सपने देखे थे। जब दूसरा आया तो उसने याद किया अपनी उस तस्वीर को जिसमें सत्यवान बच्चे की नक़ल कर रहा था। जब तीसरा आया तो उसने याद किया कितनी खुशियों से भरा है उनका नया घर। इस तरह हर उस नरक के पल को सावित्री झेलती गयी। अपने बदन पे हो रहे हर अत्याचार को उसने अपने जीवन की किसी एक मीठी और सुहानी याद से भरने की कोशिश की। जो हुई थी या जो होने वाली थी। जिसका सपना उन दोनों ने मिलके देखा था। उसने हर धक्के को, हर पीड़ा को एक, हर यातना को सहा ये सोचकर कि जब ये सब खत्म हो जाएगा तो एक खुबसूरत ज़िन्दगी उसका इंतज़ार कर रही है और उसके लिए उसे जीना है।
जब वो नहीं कर पाई तो वो भी मूर्छित हो गयी। बीच रात जब उसकी मूर्छा टूटी तो उसने देखा सब लोग जा चुके हैं और उसके बंधन खुले हुए हैं। उसे मालूम था कि कैसी अनहोनी से गुज़री है वो फिर भी उसने जल्द से जल्द अपने कपड़े ठीक किए, आखों से सिर्फ दो आंसू बहाए और बिना कोई आवाज़ किये सत्यवान तक पहुँच गयी। जा कर सत्यवान के चेहरे पर पानी डाल कर उठाया। उसने एक पल के लिए भी नहीं सोचा जो भी उसके साथ हुआ। सावित्री का सबसे पहला धर्म था अपने पति को बचाना। उसने सत्यवान को उठाया और वहां से निकल भागी। अगले दिन उसने सारा हाल सत्यवान को सुनाया। सब कुछ सुनने के बाद सत्यवान की आँखों में आँसू थे। उसने अपनी उस हालत के लिए माफ़ी मांगते हुए कहा, 


"मुझे माफ़ कर देना जब तुम्हे मेरी ज़रूरत थी मैं तब नहीं था। तुमने जो कुछ भी मेरे लिए किया है मैं उसका ऋण जीवन भर नहीं चुका सकता। कल तक मुझे पता था कि तुम एक अच्छी पत्नी हो पर तुम इतनी बहादुर भी हो वो मैं नहीं जानता था।" 


सत्यवान ने पुलिस की चौकड़ी तैयार कर उस इलाके को घेरा और वहां से सबको बरामद किया। उसके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था। उसने कई सारे गैर क़ानूनी धंधे बंद करवाए। और जितने भी शरीफ जादे इसमें शामिल थे उनको पकड़ लिया। सब पर मुकदमा चलवाया गया। सावित्री ने सत्यवान के कहने पर बलात्कार का भी मुकदमा चलवाया। अच्छी बात ये थी कि इतना सब हो जाने के बाद भी सत्यवान सावित्री के साथ था। उसने न सिर्फ उसकी मज़बूरी को समझा, बल्कि उसने उसे हिम्मत बंधाई और उसकी बहादुरी की शाबाशी भी दी। 
पर जब मुकदमा चला तो एक अजीब बात सामने आई। जिन लोगों के ऊपर मुकदमा चला उनलोगों ने साफ़ इंकार कर दिया कि ऐसा कुछ हुआ भी था। एक आदमी ने ये कहा,"ये तो खुद ही छोटे कपड़े पहन कर मेरे सामने आई थी। ये खुद चाहती थी की ऐसा कुछ हो इसमें कोई बलात्कार नहीं है।" दुसरे ने कहा, "सब कुछ झूठ है मैं तो वहां था ही नहीं। इसने मनगढ़ंत कहानी बनायी है। मैं अमीर हूँ इसलिए मुझसे पैसे ऐठने की ये चाल है।" एक और आए जो इस प्रान्त के बड़े नेता थे उन्होंने कहा, "मैं कभी ऐसा कर ही नहीं सकता। ये सब केंद्र सरकार की चाल है मुझे सत्ता से गिराने की। जब हमारी सरकार बनेगी तब देखना मैं क्या करता हूँ।" ये वो ही थे जो एक बार विधानसभा में पोर्न फिल्म देखते हुए पकड़े गए थे। एक ने कहा,"मैं तो अभी बच्चा हु। मेरी उम्र सिर्फ सत्रह साल आठ महीने है। मैं तो इस न्यायालय में आता ही नहीं, मुझे तो बाल न्यायालय में जाना चाहिए।" 


अंत में एक बाबा किस्म के आदमी आए जिनकी बड़ी से दाढ़ी थी, उन्होंने सफ़ेद रंग के कपड़े पहने हुए थे और बड़ी ही कोमल आवाज़ में उन्होंने कहा, "मैं ठहरा साधू आदमी मुझे बस किसी बड़ी ग़लतफ़हमी में पकड़ लिया गया है। अरे ये बेटी तो मेरी पोती के समान है। जी असल बात ये है की कुछ दिनों से इसकी दिमागी हालत ठीक नहीं चल रही है। ये पागल हो चुकी है।" 


सबकी बातें सुनकर और इस आलोचना के खिलाफ कोई ठोस सबूत न होने के कारण कोर्ट ने केस से जुड़े सभी लोगों को बा-इज्ज़त बरी कर दिया। जो 18 साल से कम का था  उसे तीन साल की सजा सुनाई और सावित्री को गलत आरोप लगाने,अफवाह फ़ैलाने और सम्मानीय लोगों के ऊपर मानहानि लगाने का जुर्म करार कर तीन महीने की कैद की सज़ा सुनाई और आदेश दिया कि दोबारा ऐसा न करे।


जब न्याय नहीं मिला और बेबस सावित्री और सत्यवान वापस आए तो पुलिस का एक कर्मचारी सावित्री को तीन महीने की कैद के लिए लेने आया। जब सावित्री जेल में पहुँची, जेल अधिकारी ने उसका नाम और उम्र पूछा। उसने बताया, 
"सावित्री 22 साल"


"अरे तुम्हारा नाम तो सावित्री है, जानती हो सतयुग में एक महान नारी हुआ करती थी इसी नाम से उसने अपने पति को मौत के मुहँ से बचाया था यमराज से लड़कर। और तुम ऐसा काम कर रही हो? तुम्हे शर्म नहीं आती।"


"हाँ जेलर साहब उस सावित्री ने किया होगा, पर कलयुग की सावित्री के लिए यमराज से लड़ना कोई मुश्किल नहीं है। मुश्किल है यहाँ के कानून से लड़ना। मैं भी एक सावित्री हुं वो भी एक सावित्री थी।"
 


तारीख: 30.07.2017                                    प्रिंस तिवारी









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