आसमान के फूल

[प्यार क्या है अगर मुझे समझना होता है,मैं तुम्हारी तरफ देखता हूँ। तुम्हारी मुस्कान ही मेरे लिए प्यार है।
-    हर्मन हस्सी]


“हाँथ मत लगाओ उन्हें.......वो टूट जाएंगे” एक जोर की आवाज़ लगाई पापा ने मुझे जैसे ही मैं उस आधे खिले हुए फूल की तरफ आकर्षित हुई। आजकल न जाने क्या हुआ है पिछले कुछ सालों से जब भी मैं घर पर आ रही हूँ तो मुझे पापा अक्सर अपने आप में मग्न गार्डन में काम करते दिखाई देते हैं। वो हमें गार्डन के किसी भी पौधे के पास आने से भी रोकते हैं। मेरे बच्चों को भी डांटते हैं और मुझे भी। पिछले पांच सालों से घर के सामने मैं ये गार्डन देख रही हूँ। इसमें पापा मेरे मस्त लगे रहते हैं। मैं अपने बच्चों की स्कूल की छुट्टी में साल में एक बार तो मम्मी-पापा से मिलने आती ही हूँ और पापा मुझे जब भी घर के गार्डन के पास मंडराते देखते तो मुझे डांट देते।


और मैं उन्हें हमेशा आश्वासन देती और कहती, “हाँ पापा मैं फूल तोड़ नहीं रही बस देख रही हूँ।” अक्सर उन्हें ये बतलाना पड़ता कि मेरे वहां होने से उनके चहेते फूलों को कोई खतरा नहीं है। सच कहूँ तो आलम हमेशा ऐसा नहीं था, वो हमेशा ऐसे नहीं थे। मैंने जब से होश संभाला है उन्हें तो हमेशा बाकी के पापा जैसा ही पाया है, वो भी अक्सर हमपर गुस्सा करेंगे, घर में देर-देर रात तक नहीं आयेंगे, कभी अपने दोस्तों में इतना मग्न हो जायेंगे कि भूल ही जायेंगे की उनका एक परिवार भी है। एक आर्मी के सूबेदार की बेटी होने के नाते मैंने ये सारी बातें तो अपने जीवन का हिस्सा ही समझ लिया था।
ये तो बस ना जाने कुछ सालों पहले की बात है जब से पापा का ध्यान इस बाग़ बगीचे और पेड़ पौधों की तरफ आ गया। मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आया, मम्मी से पूछो तो वो बस मुस्कुरा देती है।


पापा सारा दिन अपने बगीचे की अगुवाई करेंगे, आस पास खेलते बच्चों को डांटेंगे, “ओए ये बॉल यहाँ क्यों आ रही है? सालों अब से अगर बॉल यहाँ आई तो तुम्हारे बाप से पैसे लूँगा अपने फूलों के”, तो कभी किसी भी घर में आए हुए मेहमान को अपने गार्डन को दिखायेंगे, “ये है मेरा गार्डन, इसपर ही मैं काम करता हूँ, कितना अच्छा है न? कितना सुन्दर हैं न?” कहकर उनसे पूछेंगे। हम तो बेचारे आए हुए मेहमान का चेहरा भर ही देखते थे उस बिचारे के पास “अच्छा-अच्छा” बोलने के सिवाय कोई और चारा नहीं होता था जब वो भी काम न आता तो वो बस सर हिला देते थे। बाहर जायेंगे तो वो घंटो रुक जायेंगे एक दुकान में ताकी अच्छी खाद, अच्छा बीज या कोई और उसी तरह gardening से जुड़ा हुआ कोई सामान मिल सके। 
हमने उन्हें कभी ज्यादा परेशान नहीं किया क्यूंकि जानते थे कि बुढ़ापे में इंसान के पास ऐसा ही कुछ करने के लिए रह जाता है। पापा ये सब हमे शर्मिंदा करने के लिए नहीं कर रहे वो तो बस अपने में मग्न रहना चाहते हैं। एक दिन घर में कुछ अजीब ही किस्सा हुआ जिसने हम सबको हंसने पर मजबूर कर दिया। मेरे बेटे ने अपने नाना को बगीचे में कुछ बुदबुदाते हुए सुना। उसे लगा वो किससे बातें कर रहे हैं, वो पास जाकर उनकी बातें सुनने लगा:


“तुम सब तो मेरी बात समझते हो न? जानते हो न बिद्या ने मेरे लिए कितना किया है ज़िन्दगी भर और मैंने बदले में उसे कुछ भी नहीं दिया। बस एक काम है जो मरने से पहले करना चाहता हूँ। ये कश्मीरी गुलाबों का पौधा खिलाना चाहता हूँ। मेरी मदद करोगे न तुम लोग?” 
थोड़ी देर इसी तरह बात करते करते चुप हो गए और उन्ही पौधों की तरफ देखने लगे मानो किसी जवाब का इंतज़ार कर रहें हों लेकिन निर्जीव पौधे नहीं बोलते ये बात उन्हें भी मालूम थी इसलिए थोड़ी देर बाद ही हांथो से खुरपी उठाई और मिट्टी कुरेदते हुए बोले, “हाँ मुझे मालूम है कि वैसा फूल खिलाना वो भी यहाँ बहुत मुश्किल है लेकिन अगर हम सब साथ हों तो क्या नहीं कर सकते।” 
“देखो उधर उस टिंडे का पौधा उसे उगाने में क्या मेहनत नहीं है, अरे सात सात दिन सिर्फ सूरज की गर्मी चाहिए इसको और उसके बाद एक दिन खड़े होकर तीन घंटे तक पानी दो उसे। कभी भी आंधी, तूफ़ान या बारिश से बचाओ तब जाके कहीं एक बेल खिलती है इसकी।” फिर थोडा रूककर पानी का गमला पौधों में डालते हुए बोले, “जैसे यार तुम सब पे मेहनत की है वैसे ही कर लूँगा बस मैं बिद्या को एक बार उसके जन्मदिन से पहले वो गुलाब दे दूँ।”
“हा हा हा, मस्त नाना, मस्त!!! ज़बरदस्त!!! खूब कहा आपने” पीछे से मेरे बेटे की हंसने की आवाज़ आई। वो वहीँ खड़े होकर सब सुन रहा था और अपनी हंसी रोके हुआ था। 
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मेरे बेटे में पुरे घर में ये बात फैला दी कि नाना जी सठिया गए हैं और अकेले में पेड़ पौधों से बातें करते हैं। जिसका उन्होंने बहुत ही अच्छे से जवाब दिया, “अरे नहीं बेटा मैं सठियाया नहीं हूँ मेरी उम्र तो सत्तर साल है सठियाने की उम्र तो पार हो गई।”
“अच्छा तो आप बातें नहीं कर रहे थे अपने गार्डन में बैठ के ये कहते हुए कि ‘अपनी बिद्या’ को उसके जन्मदिन पर गुलाब दूंगा।” कहकर उसने अपनी नानी की तरफ उंगली से इशारा किया।
अशोक और मैं तो सतके में थे, सुना था कि बुढ़ापे में जवानी का दीया फड़फड़ाता है पर पापा भी रोमांटिक हो सकते हैं कभी नहीं सोचा था। हम दोनों तो ये सोच रहे थे कि बच्चों के सामने ऐसी बाते करना ठीक भी है या नहीं? मैंने अपने भाई को देखा और उसने मुझे। हमने पापा से पूछा, “पापा ये क्या हो रहा है? वो भी इस उमर में?” 
तभी मम्मी बीच में बोल पड़ी, “रुको मैं समझाती हूँ।”
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मुझे याद है बहुत साल पहले की बात है सन 1995 जब पापा का ट्रान्सफर जयपुर से अहमदनगर हुआ था। जब पापा ने घर में बताया कि उन्हें परिवार लेकर अहमदनगर शिफ्ट होना पड़ेगा तो मम्मी ने बहुत गुस्सा किया था। हमने तो इतना भी सुना है (जो की पापा अक्सर हँसते हुए कहते हैं)कि शादी में मिले चाइना के बर्तन भी उसी रात में टूटे थे, मम्मी इस कहानी को हंसके सुन तो लेती है लेकिन बाद में मुस्कुरा के कहती है, “ऐसा कुछ नहीं हुआ था वो बर्तन तो चोरी हो गए थे।” 
जैसे की उस वक़्त की हर औरत किया करती थी आख़िरकार मम्मी को भी पापा की बात माननी पड़ी। उन्होंने अपने जयपुर वाले घर को अलविदा कहा और वहां से चल कर यहाँ आ गईं। लेकिन अक्सर माँ अपने पुराने घर को ढूंढा करतीं, असल में अपने पुराने घर से प्यार करने का एक बहुत बड़ा कारण था कश्मीरी गुलाब के फूल। मुझे बहुत अच्छी तरह से तो याद नहीं लेकिन वो हल्के सफ़ेद और पीले रंग के, बहुत चमकीले और अपने अन्दर गज़ब की खुशबू समेटे हुए फूल थे जो हमारे जयपुर वाले घर में रसोईघर के सामने वाले गार्डन में खिला करते थे। माँ उनका बहुत ख्याल रखती थी और वो साल के किसी भी मौसम में खिल उठते थे। मैं और मेरा भाई तो बच्चे थे लेकिन उस वक़्त मोहल्ले में हमारी साख थी इसी बात से कि सिन्हा जी के घर इतने सुन्दर गुलाब के फूल खिलते हैं। माँ का सबसे बड़ा दर्द जयपुर छोड़ने का तो बस यही था। पापा ने माँ को मनाते हुए उनसे वादा किया था कि चाहे कुछ हो न हो अहमदनगर में भी उन्हें ऐसे ही खिले हुए फूल मिलेंगे। बल्कि वही कश्मीरी गुलाब। 


लेकिन कहाँ ज़िन्दगी हमे मौका देती है अपने बीते हुए वादे पुरे करने का। हो गए तीस साल मम्मी पापा को अहमदनगर वाले हमारे घर में रहते हुए। मेरी और अशोक की पढाई पूरी हो गयी, ये घर हमारे नाम का हो गया, पूरी फॅमिली को एक कार मिल गयी और मेरी शादी भी हो गयी पर मम्मी का वो कश्मीरी गुलाब के फूलों का गार्डन अब तक नहीं सज पाया। आज से कुछ ही साल पहले ये झगड़ा हुआ तो पापा की चेतना जागी है। मम्मी ने याद दिलाया, “बातें तो आप भी बना ही लेते हैं, मुझे झांसा दे के यहाँ ले आए। घर बार हो गया, बच्चे अब जब अपनी ज़िन्दगी में खुश हैं तो मेरे बारे में कभी सोचे हैं? एक गुलाब भी तो नहीं है मेरी पसंद का।”
बस फिर क्या था मानो जैसे ब्रम्हा ने खुद इस कहानी को लिखा हो और अब पापा भीड़ गए उस दिन से अपनी जत्तो जहत में उस ख़ास तरीके के कश्मीरी गुलाब को उगाने में। 
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“ओफ्फ मुझसे नहीं हो पा रहा” कहते हुए पापा ने अपने हाँथ से वो फूल फ़ेंक दिए। गुलाब उगाने के लिए एक फूल गाड़ दो गमले में और वो एक हफ्ते के अन्दर असर दिखाने लगते हैं। पापा ने किसी से कहलवा के कुछ कश्मीरी गुलाब मंगवा लिए और हर दुसरे या तीसरे दिन अपने घर के बगीचे में experiment करते। कभी गुलाब होता लेकिन खुशबू नहीं, कभी रंग ही ना निकल पाता तो कभी फूल कलि रहकर ही मर जाता। 


वो फूल अब तक के सबसे ख़ास और खुबसूरत थे लेकिन उनसे भी वो कश्मीरी गुलाब वाली बात नहीं आई। सभी जानते थे कि यहाँ पर उस फूल की बेलियाँ मिलना मुश्किल है। अब वो भी ख़तम होने को आईं। आज आखरी बेल भी ख़तम हुई। 
“जाने दो अगर नहीं हो रहा तो रहने दो।” मम्मी ने हँसते हुए कहा। “आपने तो पहले ही इतने सारे खुबसूरत फूल खिला दिए हैं कि गार्डन भर गया है। और वैसे भी आप इतनी कोशिश कर रहे हो यही देख के मुझे बहुत ख़ुशी हुई।”
“नहीं मैंने तुम्हे वादा किया था आज से तीस साल पहले कश्मीरी गुलाब लाने का लेकिन अब तक नहीं दे पाया, वो तुम्हे दे के ही रहूँगा। मरने से पहले कम से कम.............” मम्मी ने झट से पापा के मुंह पे हाँथ रखा। 


मम्मी फ़िल्मी स्टाइल में किसी अदाकारा की नक़ल नहीं कर रही थी। वो एक गहन सच्चाई से मुंह छुपा रही थी। पापा का हाई ब्लड प्रेशर, ज़रूरत से ज्यादा छोटी से छोटी चीज़ के बारे में सोचना, पचास साल तक सिगरेट के डब्बे से उनका प्यार ऐसे ही कुछ छोटे छोटे कारणों की वजह से उन्हें आज bronchitial cancer है। मम्मी उसी से डरती है। 
“मैंने बहुत सालों से तुम्हारी माँ को वो गुलाब देने का वादा किया है, और पिछले पांच सालों से कोशिश कर रहा हूँ।” कहकर वो फिर से लग गए अपनी पौधों की दुनियां में।


मेरे पापा कोई परफेक्ट आदमी तो नहीं लेकिन अपने वादे के हमेशा पक्के रहें हैं, खासतौर से जब उनका ज़मीर जाग जाए तो वो और भी खतरनाक हो जाते हैं। और अब तो उनके पास बहुत कम वक़्त बचा था अपने वादे को पूरा करने के लिए। उन्होंने कसम खा ली थी कि ये काम तो वो करके ही जाएंगे। भले ही अपने आखरी दिन तक उन्हें काम क्यूँ न करना पड़े। 
लेकिन एक दिन ये बात भी सच निकल गयी, उस साल गर्मी से बरसात आई, सर्दी आई फिर बसंत और फिर अगले साल की गर्मी लेकिन कुछ हाँथ नहीं लगा। अगले साल की गर्मी में जब पापा हर रोज़ की तरह सुबह उठे, अपने दांत साफ़ किए, मुंह धोया और गार्डन से काम करकर वो डाइनिंग टेबल पर बैठे ही थे कि बोले, “मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा।” बस इतना ही कहना था कि लड़खड़ा के वो फर्श पर गिर पड़े।


मम्मी तो मानो उनपर चढ़ ही गई और बार बार उन्हें उठाने की कोशिश करने लगी पर कोई फायदा नहीं था। पापा जा चुके थे। 
साल के अगले कुछ दिन तो हम सबके आंसू पोछने में ही गए। वो एक मामूली इंसान थे और मामूली इंसान के जाने पे सिवाय उसके परिवार के और किसीको कोई ख़ासा दुःख नहीं होता। हमने अपनी ज़िन्दगी को एक बार फिर से नार्मल करने की कोशिश शुरू कर दी। धीरे धीरे पापा की कुछ पुरानी चीजें घर से निकालना शुरू किया, घर में आए हुए रिश्तेदारों को भी अलविदा कहा, अब घर को भी बेचने की बात आ गयी। घर पुराना भी था और वहां कोई रह भी नहीं रहा था। मम्मी हमारे साथ आके रहेंगी ये बात हमने सोच ली थी। 
घर बिक भी काफी जल्दी गया। बस तीन या चार हफ़्तों में हमे अच्छी कीमत के साथ एक खरीदार भी मिला। वैसे ही एक दंपति। कुछ महीने गुज़र गए और मम्मी का सत्तरवां जन्मदिन आ गया। उसी रोज़ हमारे घर पे हमारे पुराने घर में रहने वाला परिवार आ गया। उन्हें कुछ ज़रूरी कागज़ देने थे घर के सिलसिले में और एक में मम्मी का signature भी चाहिए था। जैसे ही मम्मी ने घर का दरवाज़ा खोला तो उस औरत के हाँथ में वैसा ही गुलाब देखा जिसकी मम्मी को चाह थी। मम्मी ने समझा कि इस औरत को उनका जन्मदिन याद है और वो उन्हें तौफ्हा देने आई है, मम्मी ने उस फूल को लपक के पकड़ा और कहा, “थैंक यू बेटा, तुम्हे पता चल गया होगा कि आज मेरा जन्मदिन है। ये मुझे बहुत पसंद थे।”


उस औरत ने हैरान होते हुए कहा, “नहीं आंटी मुझे कुछ भी नहीं मालूम, मैं तो बस ये एक फूल आप ही के गार्डन से तोड़ कर लाई।”
“मेरे गार्डन से?”
“हाँ, वहां तो ऐसे फूल बहुत सारे हैं, इनकी खुशबू भी गज़ब है।” इतना सुनना ही था कि हमने अपनी कार निकाली और मम्मी को साथ लेकर अपने पुराने घर के सामने पहुँच गए। यकीन तो नहीं हुआ था अब तक लेकिन सामने देखकर मान गए थे प्यार की ताकत को। असल में गुलाब के फूल कुछ दिनों तक छोड़ दिए जाएँ तो अपने आप खिलते हैं। पापा ने शायद उन्ही फूलों को लगा के छोड़ दिया होगा।
मम्मी का चेहरा हैरानी और गर्व दोनों से भरा था। उनकी आँखों से आंसू निकल रहे थे। वो फूल जिसे सालों पहले न जाने किस घड़ी में उन्हें छोड़ना पड़ा था वो आज उनके सामने उन्ही के बगीचे में खिल रहे थे और वो प्यार जिसका पापा ने कभी खुल के ज़िक्र नहीं किया, कभी किसी फिल्मी स्टाइल में ‘आई लव यू’ नहीं बोला वो भी आज उनके सामने ज़ाहिर था। जिस प्यार को आज की जनरेशन सिर्फ सिनेमा थिएटर में या बनावटी नोवेल्स में ढूंढा करती है उसका एहसास एक सत्तर साल की बूढी औरत को उस दिन हुआ था। 
बगल में खड़ी उस औरत ने पूछा, “कहाँ से आयें हैं ये इतने खुबसूरत गुलाब के फूल?” 
मम्मी ने मुस्कुरा के कहा, “आसमान से बेटा, आसमान से”
-    रूचि सिन्हा

 


तारीख: 31.07.2019                                    प्रिंस तिवारी









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