ठहराव या बदलाव…

नंदिनी माँ बनने से पहले एक प्रतिष्ठित मल्टीनेशनल कंपनी में
नौकरी कर रही थी। बेटे के जन्म के उपरांत उसकी देखभाल
तथा पालन-पोषण करने के लिए उसने नौकरी छोड़ने का फैसला
किया।
आरंभ में वह उसके साथ हर पल का आनंद ले रही थी !
वह अपने बेटे की दैनिक दिनचर्या की गतिविधियों को तस्वीरों
में क़ैद करने में पूरी तरह से व्यस्त थी ! उसने कब बैठना शुरू
किया, कब चलना शुरू किया ..ये तिथियां तो उसे ज़ुबानी याद थीं!
परन्तु लगभग डेढ़ वर्ष के पश्चात् उसे लगने लगा कि वह घर की
चार दीवारी में बंध गई है !

जब वह नौकरी के लिए फिर से आवेदन करने का प्रयास करती
है, तो उसे भर्तीकर्ताओं से प्रतिक्रिया मिलती है कि आपके पास
करियर विराम है।
मानव प्रवृत्ति स्वयं की तुलना दोस्तों और आसपास के लोगों से
करने की होती है। नंदिनी भी दूसरों की सफलता देखकर स्वयं से
प्रश्न करती थी ,जिसका उतर न मिलने पर खुद के लिए दुखी व

चिंतित रहती थी। उसने महसूस किया कि उसके पास अपने
पिछले जीवन में वापस जाने के लिए समय और आत्मविश्वास
का स्तर नहीं है।

उसे लगने लगा कि बच्चा उसके करियर के लिए बाधा बन गया
हैं। यदि बच्चा उसके जीवन में नहीं होता, तो वह अधिक से
अधिक आगे बढ़ सकती थी।
अब वह मातृत्व का कर्तव्य तो निभा रही थी , परंतु दिल से नहीं !
नंदिनी के पति महावीर  ने भी अपनी पत्नी के व्यवहार पर ध्यान
दिया और बेटे की गतिविधियों को डायरी में लिखने
का सुझाव देते हुए कहा ,
“ये क्षण जिंदगी में कभी वापस नहीं आएंगे, तुम स्वयं
भूल जाओगी जब आरुष बड़ा होगा !”
यह महसूस करते हुए उसने बेटे आरुष की गतिविधियों का
वर्णन एक डायरी में लिखना शुरू किया !अब समय आ गया था
जब वह उन भावनाओं और यादों को चंद पन्नों पर समेट सके,
जो कभी वापस नहीं आ सकती थीं ।
इसी दौरान उसे एहसास हुआ कि उसे किसी समय लिखने में भी
रूचि थी ! नौकरी के चलते हुए जिसके लिए उसे समय नहीं

मिल पा रहा था ! लेखन कार्य में पुनर्वापसी उसके लिए किसी
आनंदमयी अनुभव से कम नहीं थी !
अब तो उसने बचपन विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों पर भी
लिखना आरम्भ कर दिया था ! चाय का कप हाथ में पकड़े वह
सोच में डूब जाती है ,
“ यदि मेरे जीवन में ठहराव न आता , तो क्या बच्चों के बचपन
की यादों को मैं कागज़ के पन्नों पर संजोने का समय निकाल
पाती! क्या मेरी लेखन कार्य की रूचि पुन: तरोताज़ा हो पाती!”
यही ठहराव जैसे उसका वास्तविक पेशेगत मार्गदर्शन करने में
सफल रहा था!
 

 


तारीख: 11.03.2024                                    साहित्य मंजरी









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