और आना

विदा होते ही आँखों की 
कोर में आँसू आ ठहरते 
और आना/जल्द आना 
कहते ही ढुलक जाते आँसू
 
इसीको तो रिश्ता कहते 
जो आँखों और आंसुओ के 
बीच मन का होता है 
मन तो कहता और रहो 

मगर रिश्ता ले जाता 
अपने नए रिश्ते की और 
जैसे चाँद का बादलों से होता 
रिश्ता ईद/पूनम का जैसा 

दिखता नहीं मन हो जाता बेचैन
हर वक्त निहारती आँखे 
जैसे बेटी के विदा होते ही 
सजल हो उठती आँखे
कोर में आँसू आ ठहरते

फिर 
ढुलकने लगते आँखों में आंसू
विदा होने के पल चेहरे छुपते 
बादल में चाँद की तरह 
जब कहते अपने -और आना 

दूरियों का बिछोह संग रखता है आँसू 
शायद यही तो अपनत्व का है जादू 
जो एक पल में आँसू 
छलकाने की क्षमता रखता 
जब अपने कहते -और आना


तारीख: 06.06.2017                                    संजय वर्मा \"दर्ष्टि \"




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है