‘गल्लू बाबू’ जरा तोतलाता,
मीठा खाना उसको भाता ।।
‘चाचा’ को ‘छाता’ कह जाता,
‘मम्मी’ तो मुँह में रह जाता ।।
‘आटा’ को वो कहता ‘माता’,
कभी नहीं वो ‘तीखा’ खाता ।।
‘राधा’ को वो ‘आधा’ कहता,
‘रोटी’ को ‘लोटी’ बोल जाता ।।
‘टीचर’ को कहता वो ‘लीचर’,
‘पीटर’ को कह जाता ‘फीटर’ ।।
‘लीटर’ को बोल जाता ‘मीटर’,
‘निक्कर’ को बोल जाता ‘हीटर’ ।।
माँ उसकी तो खूब थी परेशान,
लिया अब उसने थोड़ा संज्ञान ।।
एक उपाय गँवही वैद्य से पूछा,
वह उपाय भी पड़ गया छूँछा ।।
माँ ने अब वो उपाय अजमाया,
रख ‘लड्डू’ में ‘मिर्च’ खिलाया ।।
‘गल्लू बाबू’ तब खूब छटपटाया,
दाँतों संग कान भी झंझनाया ।।
इस उपाय का पड़ा उल्टा ‘पासा’,
‘गल्लू’ का तो बिगड़ा “बताशा” ।।
‘कान’ दोनों तो उसके बहराये,
माँ ने फिर तो अपने होश गँवाये ।।