वक्त गुज़रते देर न लगी ।
हम सपने बुनते चले गए ,
और वो उन्हे उधेड़ते चले गए।
कहते थे वो कि प्य़ार सिर्फ़ हम से है।
पर वो तो सब में प्य़ार ढॅंढते चले गए ,
और हम अपनी दुनिया ही उन में पाते चले गए।
लोग कहतें हैं, वो खेल था प्य़ार नहीं।
पर हम नादान प्य़ार समझते चले गए।
वापसी का इन्तजार करना कोई हम से सीखे।
हम तो कभी न होनें वाले का भी इन्तजार करते चले गए।
हम बस प्य़ार करते चले गए और वो खेल खेलते चले गए।।