स्त्री स्वर

नही बन सकती
हर किसी के लिए अच्छी....
नहीं रख सकती मैं,
हर किसी को खुश....
थक गयी हूँ मैं
सबकी उम्मीदों पर
खरा उतरते उतरते...


मेरा भी दिल करता है
मैं भी गलतियां करूँ..
हर सांस का जवाब
नही दे सकती मैं..
आती है तो क्यों आती है..
जाती है तो क्यों जाती है..
थक गयी हूँ मैं..


सबके अनुसार खुद को
ढालते ढालते..
जरुरी नही मेरी हर बात
अच्छी ही हो..
जरुरी नही मैं जो करूँ
वो सही ही हो..
मुझे भी अपनी गलतियों से
सीखने का हक़ है..


भूल गया है ये दिल भी धड़कना..
धड़कने से पहले 
इजाजत लेनी होती है इसे भी..
शायद थक गया है..
इसलिए अब धड़कना भी नही चाहता.
 


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है