वाह तेरा अंदाज-ए-मुहब्बत
जो मुझे गुमनाम कर गयी!
लगता है , खुद को रखकर भूल गया हूँ मैं,
तू मुझे ही मुझसे बेनाम कर गयी !
दिया था भरोसे पर,
इश्क़-ए-प्याला भरने को !
और वो आई तो आई ,
फ़कत जहर-ए-जाम भर गयी !!
वो तो खुश है गैर की होकर ,
पर मेरे सामने ही दूजा हाथ थामकर ,
आह ! जीना हराम कर गयी !!
आई थी तो लगा हो गयी सुबह ,
रुक्सत क्या हुई ,जिंदगी शाम कर गई !!
इतनी मुहब्बत से नवाजा था तुझे,
पर ये सिला था क्या मेरा ?
जो आशिक़ों की महफ़िल में बदनाम कर गई !!
दिया क्षणिक प्यार और तन्हाई का अलाम ,
और मेरे दिल का काम ,तमाम कर गई !!
अबतक जो हदों में था अफ़साना
चाहता था दिल बस शिद्दत से प्यार पाना ,
तू गई तो गई, किस्से सरेआम कर गई !!
खुद तो सुकून में हैं शायद
सोच रहा हूँ ,कैसे कर लेती रोज नए इश्क़ की कवायद !
पर आसानी से इतने गहरे जख्म देकर
तन्हाई ,आंसू,दर्द और इक टूटा दिल ,
मेरे नाम कर गई ||