तेरी बात हीँ कुछ और है

तुझे क्योँ ना चाहुँ दिल-ओ-जान से
तेरी बात हीँ कुछ और है
तुझ पर सब कुछ लुटा दूँ शान से
तेरी बात हीँ कुछ और है

तुझे याद हो ना याद हो
कल चौदहवीँ की रात थी
तू छत पे बन सँवर के थी
तेरे हुस्न की क्या बात थी

तेरा मुकाबला था चाँद से
तेरी बात हीँ कुछ और है…..

तूने जिस जगह भी कदम रखे
मैँने अपना दिल बिछा दिया
ग़मोँ को जब भी थी तेरी जुस्तजु
मैँने अपने घर का पता दिया

मुझे सब जानते तेरे नाम से
तेरी बात हीँ कुछ और है…..

कभी यूँ भी आ मेरे रुबरु
मुझे नाज़ हो मेरे नसीब से
तुझे धड़कनोँ मेँ छुपा के मैँ
रोज़ देखा करुँ करीब से

सब माँगा किये तुझे नाज़ से
तेरी बात हीँ कुछ और है…

ये बहार है तेरे हुस्न से
हर फूल का अभिमान तू
तुझे क्या कहुँ मैँ दिलरुबा
मेरी शायरी की जान तू

ज़मीन चल रही तेरी साँस से
तेरी बात हीँ कुछ और है

तुझे क्योँ ना चाहुँ दिल-ओ-जान से
तेरी बात हीँ कुछ और है
तुझ पर सब कुछ लुटा दूँ शान से
तेरी बात हीँ कुछ और है


तारीख: 18.07.2017                                    प्रमोद राजपुत




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