मैंने नहीं सोचा कभी कि चाँद चाहिए,
शायद मुझे एहसास था कि वो दूर बहुत है।
चाहत की मगर जिस प्यार की वो चाँद बन गया,
समझा था जिसे पास वो दूर बहुत है।
मुमकिन ना था कि उस चाँद करीब जा सकें,
जिस चाँद की ख्वाहिश की, वो भी ख्वाब बन गया।
रस्ते भटक गये या मंज़िल ही खो गयी
रस्ते भटक गये या मंज़िल ही खो गयी,
किस मोड़ से जाना था , किस मोड़ मुड़ गये।
लगता है, थे तन्हा और तन्हा ही रहेंगे,
लगता है, थे तन्हा और तन्हा ही रहेंगे,
लगता है इस नमाज़ - ए - अदा का ख़ुदा नहीं कोई।