रक्खा है मैंने आस्तीन में साँप पाल के
मिलना मुझसे तुम ज़रा देख भाल के ।
वैसे तो हूँ दिखने में बेहद शरीफ मगर
रोक देता हूँ तरक्की मैं अड़ंगे डाल के ।
मौके के मुताबिक मुखौटे भी हैं मेरे पास
और अभिनय भी करता हूँ मैं कमाल के ।
शक्ल-सूरत भी है मेरी इन्सान के जैसा
मगर फ़ितरत मेरी है यारों हलाल के ।
कोसता हूँ कसम खा के मरते दम तक
रह न जाए दिल में शिकवे मलाल के