अधूरी सी

आंखों में झांकती हूं तो बेकरार सी लगती हैं,

अधूरी सी

मानो मुंतज़िर हो अहमीयत की

लेकिन दूर तक एक लम्बी बेतुकी सड़क 

नज़र आती है

मानो कह रही हो सफर अभी लंबा है

और अकेले ही चलना है।


नज़र घुमा कर देखती हूं तो अपने को 

रिश्तों में जकड़ा पाती हूं

या शायद  विचारों के शोर ने बांध रखा है

मानो चुनने को कह रहे हों

की या तो आज़ाद हो जाओ या 

बंध जाओ इन रिश्तों की डोर से।


चारों ओर से बंधा, जकड़ा पाती हूं खुदको

कभी बेरोज़गारी घर कर लेती है, 

कभी मन की उलझन

तो कभी रिश्तों की डोर अपनी ओर खींच लेती है

मानो आगाह कर रही हो अकेलेपन से

स्वयं को आज़ाद करने वाली मै

खुद ही में बंधने लगी हूं।


तारीख: 22.02.2024                                    महिमा




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