मैं सालभर बेसब्री से इंतजार करता हूँ
दिसंबर के आने का,
ताकि किसी अलसायी सुबह
कोई चिड़ियाँ-उड़कर,
मेरे कानों में तुम्हारा संदेश डाल जाए।
या तुम्हें लिखा मेरा पहला प्रेमपत्र
अपनी यात्रा ही पूरी कर ले,
जोकि अब तक अप्राप्य है तुम्हें।
जब आसमान नीला 'और' नीला हो जाता है
और चंद्रमौलिका का पूरा खिला रूप
मुझे अपने स्पर्श का निमंत्रण देता है।
मुझे भाती हैं दिसंबर की सुबहें-
जब किसी अज्ञातलोक में,
विरहाकुल-प्रेमियों के आलिंगन से उपजे
मिलन के आंसुओं के भार से;
झुक जाते हैं
लॉन में उगे घास के तिकोने सिरे।
मुझे अच्छा लगता है दिसंबर का महीना,
कि सर्द हवाओं के बीच
कहीं-कोई बूढ़ी औरत,
अपने लबादे में छिपा लाए
तुम्हारी भीनी खुशबू,
और मेरे ज़हन में छोड़ दे।
कि इसी महीने के एक दिन,
किसी संध्या-
हम बच्चों के साथ मिल क्रिसमस गीत गाएँ।
मुझे बेहद पसंद है दिसंबर की धूप,
कि 'तुम्हारा'
मेरे पास बैठे होने का एहसास
इनमें और गहरा जाता है;
और मैं सहसा,
पाता हूँ अपने आपको...
चीड़ वनों में एक अनजानी-सी धुन का पीछा करते।
या बहता जाता हूँ
बाँसुरी की एक टेर संग।
दिसंबर की सर्दियाँ,
तुम्हारी स्मृतियों का लिहाफ ओढ़े
मेरे सिरहाने सोती हैं।
इन दिनों मैं
शरमाई धूप के रेशे बीनता हूँ,
और तुम्हारे लिए चुने गए
चीड़ के सूखे फलों को सहेजता हूँ।
मेरे लिए दिसंबर
प्रतीक्षाओं के खत्म होने का समय है।
जब कोहरे की उदासीनता चीरती,
ट्रेन की हर छोटी सीटी
मुझ तक पहुँचती है;
और तुम्हारे लौट आने की
प्रत्येक संभावना में,
'दिसंबर' अपने वजूद का औचित्य तलाशता है।