हर सौवें बरस.

हर सौवें बरस-
सोती है जनता,
जनमती है ग्रंथि,
उपजती है महामारी!

हर सौवें बरस-
आता है जलजला,
बढ़ता है जलस्तर,
डूब जाते हैं शहर!

हर सौवें बरस-
होता है प्रलय,
फूटते हैं ज्वालामुखी,
पलटती हैं मान्यताएं!

हर सौवें बरस-
बढ़ती है भुखमरी,
गहराता है असंतोष,
चीख पड़ती है लाचारी!

हर सौवें बरस-
उठते हैं लोग,
हिलते हैं तख्त,
सहम जाता है शासक!

हर सौवें बरस-
टूटती हैं बेड़ियां,
जलती हैं मशालें,
फैलती है क्रांति!

हर सौवें बरस-
बदलता है इतिहास,
कर दिए जाते हैं पदच्युत
सभी तानाशाह।।


तारीख: 11.04.2024                                    अंकित









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