मुझें साहित्यकार समझने की आप भूल न करें

मुझें साहित्यकार समझने की आप भूल न करें
उबड़-खाबड़,कांटेदार रचनाओं को फूल न कहें।
मेरी रचनाएँ बनावट और सजावट से हैं महरूम
कृपया  अलोचना करें मगर  ऊल-जुलूल न कहें ।
हाँ चुभते ज़रूर हैं चंद लोगों  की नज़रों में यारों
हक़ीक़त में हैं नागफनी ,इन्हें आप बबूल न कहें।
कुछ तो बदलाव लाया जाए परंपरागत लेखन में
सदियों से रहा यही है साहित्य  का उसूल न कहें ।
बड़े आए अजय तुम साहित्य के सुधारक बनकर
बहुत सह लिया हमनें आपको,अब फ़िज़ूल न कहें 
 


तारीख: 19.03.2024                                    अजय प्रसाद









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