प्रेम में मेरा वास

मुझे बड़ा आश्चर्य होता है
कि मैं तुम्हारी माँ के इश्क़ में हूँ
शायद,तुम्हारे पिता के प्रेम में भी
या तुम्हारे भाइयों के स्नेह में भी  
तुम खैर ! अपनी तो  पूछना ही मत

हद तो यह है कि तुम्हारी गलियों के 
कंकड़ पत्थर में भी मेरी रूह बसती है

वो मौन खड़ा अडिग सा पीपल का पेड़
जो कई सालों से कुछ नहीं कहता
उसके तह-तह में मेरी  नब्ज धड़कती है

तुम्हारे  हर एक तार से मेरे मन का तार जुड़ा है
जानती हूँ मेरी मोहब्बत का पागलपन है यह

यह कौन सा मंजर है , दरिया है या समंदर है
फासले मौन हैं मिलों की दूरी भी शून्य है
अब हर रोज स्वयं की ईश्वर से मुलाकात होती है!

अब कोई तमन्ना नहीं  इस  दिल को
मरने के बाद मोक्ष के लिए गंगा की भी  ज़रूरत नहीं

मेरे प्रेम में बस प्रेम का वास है
इसलिए न तो तुम्हारी जरूरत है
न किसी और कर्मकांड की
कोई भय भी नहीं
क्योंकि -
प्रेम मुझमें बसता है
मैं प्रेम में बसती हूँ।


तारीख: 25.04.2024                                    नीतू झा









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