चला जा रहा हूँ
क्यों, मैं नहीं जानता
लेकिन चला जा रहा हूँ
कहाँ, नहीं मालूम
लेकिन चलता तो पड़ेगा
किधर है मंज़िल
क्या है प्रयोजन
कौन मुझे
अपनी ओर खींच रहा है
मुमकिन है चलते-चलते
बोध होने लगे कि
कहाँ है मंज़िल और
क्या है लक्ष्य
रुकना नहीं
थमना नहीं
बस चलते ही जाना है
कदाचित
इसी का नाम ज़िन्दगी है