रिश्ते

रिश्तों के ये बंधन 
हैं कभी अनबन 
हैं कभी अपनापन 

रिश्तों के ये जाल 
हमारी है मर्ज़ी 
या ज़माने की चाल 

रिश्तों की ये मजबूरियां 
लाती हैं करीब 
या बढाती हैं दूरियां 

रिश्तों के ये सवाल 
सच बोलूँ तो गलत 
जूठ बोलूँ तो बेहाल 

रिश्तों की ये ज़िम्मेदारियाँ 
छुड़ा दी आदतें, छुड़ा दिए शौक 
और छुड़ा दी यारियां 

रिश्तों की शक्ल में ये प्यार 
सच है या झूठ  
पर हो गए हम भी शिकार    
                 


तारीख: 02.07.2017                                    कनिका वर्मा




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