श्वान और इंसान

एक दिल इक श्वान को इंसान कह दिया,

उसने कहा कि क्यों मेरा अपमान कर दिया.

सम्बोधन मेरा उसको अचानक तीर सा लगा,

कुत्ता मुझे उसदिन बड़ा गंभीर सा लगा.

सब हाल-ए-बयाँ कर गया आँखों की जुबां से,

इंसान है क्या चीज़ ज़रा पूछिए हमसे.

 

जिसने हमें रोटी का निवाला खिला दिया,

देकर के जान भी वफ़ा का हक़ अदा किया.

और ये इंसान जिसका खून चूसता,

उसकी ही पीठ में छुरा खुदगर्ज भोकता.

आपको इंसान को पहचान नहीं है,

होती अगर तो आपको ये ज्ञान नहीं है.

जुर्म हुआ और जब मुजरिम नहीं मिला,

मौका-ए-वारदात पर हमको बुला लिया.

कोशिशों को आपकी अंजाम दिया है,

लाखों को भीड़ में उसे पहचान लिया है.

मेरी क़ौम स्वामिभक्ति की मिसाल रही है,

इंसान जैसी दोगली गद्दार नहीं है.

आपसे यह अर्ज है मल ज़ुल्म कीजिये,

मैं श्वान  इंसान की गाली न दीजिये.


तारीख: 25.07.2017                                    रमा शंकर मिश्र 'उर्मिलेश'




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