हम चले जा रहे थे,
इस जीवन पथ पर अकेले,
न था कोई अपना, न था कोई पराया,
न थी कोई उमंग, न थी दुःख की छाया.
पर,
इक मोड़ पे आ मिली तुम,
थी तुम्हारी मनमोहक काया,
जगाई प्रेम अलख,
मन मंदिर में मेरे,
एक एहसास था कहीं दबा हुआ,
विचरने लगा उन्मुक्त,
वातावरण में,
ख़ुशी की किलकारियां भरता हुआ,
पता क्या था उसे,
फूल समझा था जिसे उसने,
वो एक काँटा था,
जो प्यार की झलक दिखला के,
अपनत्व का रस बरसा के,
चला जाएगा जीवन से,
मुट्ठी में बंद रेत,
सरकती जा रही हो जैसे…