वो जिनको
घायलों में गिन रहे हो तुम
वो भी प्रायः
मर चुके हैं,
क्यूँकि
उनके अंदर जीते हुए
आदमी भी
डर चुके हैं।
तुम जिसे
कायरता कहते हो
वो दरअसल है
उनकी वीरता का नमूना
क्यूँकि
तुम्हारे घर में आकर
उन्होंने चीरा है
तुम्हारी लाज का सीना।
अब तुम चाहे
शब्दों के
जितने भी बीन बजा लो
ढोल-नगाड़े पीट-पीट
अपनों को बहला लो
ताबूत में बंद लाशें
फिर से अब
अपनी कहानी कहने
नहीं आयेंगी,
अब तो
बरस दर बरस
दीए ही जलेंगे
उनकी मज़ार पर,
हर पितृ-पक्ष पर
बस तर्पण होगा
उनकी याद में।
तुम बस
प्रमाण जुटाओ
दुनिया को बताओ
कि कैसे किसी
दहशतगर्द ने
तुम्हारे अधिकारों का
हनन किया
और तुम
इस आस में
बैठे रहे
कि कोई कुछ तो कहे।
कोई कुछ नहीं कहेगा
पस्त हौसलों के पीछे
भला कौन रहेगा।
हो सके तो
इस बार
राष्ट्रगान न गा कर
कुछ मर्सिया गा लेना
या पढ़ लेना नौहा
क्यूँकि
शायद वही सुनकर
बन जाए
हमारे अंदर कुछ लोहा।
कहो
करोगे ना?