मौसम के तेवर बिल्कुल बदल चुके हैं कभी चालीस तो कभी इससे अधिक लगता है सभी तनाव में जी रहे हैं मौसम के कारण या कुछ ओर कुछ स्पष्ट नहीं।कहीं विनोद उपहास नहीं दिखता बस जी रहे हैं सब पता नही कैसे लगता है सब पस्त है स्वयं से या गर्मी से हर ओर शून्य है एक निस्तब्धता सी जैसी अक्सर रात को होती है पर रात भी उमस भरी चिपचिपी सी है जैसे बारिश के बाद होती है।
जीवन में कितना ही बदलाव आ चुका हो पर लगता है पुराने दिनों का सा सुख चैन अब नहीं कुछ पैसों अट्ठनी रुपया में मुस्कुराहट खरीद सकते थे और इतना एकत्र करने में एक अलग ही आनंद व उत्साह था पर अब सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं शायद कुछ भी नहीं वही रोज़ की दौड़ती भागती दुनिया के चलते टूटते सपने और बैर द्वेष भरी और बदलती ज़िन्दगी बस और कुछ नहीं।
एक थोथलापन या दिखावटी प्रेम जो पल भर के लिए ही होता है इसी दुनिया में
कुछ आज भी पहले से है सिद्धांतप्रिय वो ज़माने से स्वयं को इतर समझते हैं डगर कोई भी हो हर हाल में प्रसन्न।पर यह समझ नहीं आता कि ये सब मौसम तय करता है या कुछ और ही इतनी गर्मी कहां से आती है आदमी के अंदर और बाहर तभी अंदर और बाहर सब तरफ एक जैसा लगता है।किसी का कुछ नहीं बनता संबंध ही टूटते है उनमें भो गर्मी आती है इसीलिए शीतल रहिये क्योंकि शांत चित से लिए फैसले अक्सर लंबे चलते है।मौसम तो पल दो पल में बदल जाता है किंतु गुज़रा वक्त और अच्छे लोग बार बार नहीं आते ।