युवा कवि “लव कुमार लव” का काव्य संग्रह ‘मिट्टी का साहित्य’ एक छन्दमुक्त कविताओं का संग्रह है.जिसे पढ़कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि जब अधिकतर साहित्य बाजार से प्रभावित है और लाभ हानि को देखकर लिखा जा रहा है. जिसमे लेखक और प्रकाशक भी बह रहे है. ऐसे समय में लेखक ने थोडा लीक से हटकर अपना काव्य संग्रह पाठक के सामने प्रस्तुत किया है. इस कविता संग्रह को पढ़ते हुए मुझे बहुत दिनों बाद साहित्य में ग्रामीण जीवन और ग्रामीण सोंदर्य की अभिव्यक्ति को पढने का मौका मिला. प्रत्येक लेखक की कविता के अपने अर्थ और सरोकार होते हैं. उसी प्रकार लव कुमार ने भी अपनी कविता को एक अर्थ देने का प्रयास किया है-
‘कोमल मधुर सी बह रही है मेरे मन से
शांत पानी की तरह
एक शब्दों की धारा
तन मन रूप किनारों सी टकराती ...
चली आ रही है एक नायिका की तरह
स्पर्श करने मेरे बेचैन मन को
संजो रही है कुछ सुरहरे सपने
कहीं तुम कविता तो नहीं ...
लेखक ‘कविता का बसेरा’ में कहता है –
कविता यूँही नहीं मिल जाती
कहीं भीड़ में
यूँ ही नहीं उमड़ पड़ती कहीं
किसी खंडहर मन में’
संग्रह की कविताएँ किसी सुदूर देश की यात्रा नहीं करती, कविता का केंद्र गाव, घर, परिवार, मां, बेटी, बचपन की गहरी अनुभूतियाँ भी समाहित हैं. जिससे लेखक का गहरा सरोकार है. यही सरोकार कविताओं में संवेदन की गहराइयों को परत दर परत उकेरने का काम कवि करता है . ‘मां’ नामक कविता में कवि लिखता है कि –
उससे ही मिलने चाहिए दुनिया के
सारे स्वर्ण पदक
वो ही हकदार है इनकी
लवकुमार अपनी कविताओं में बेचैनी, छटपटाहट और उदासी की परतों को धीरे-धीरे खोलने की कोशिश करते हैं जिसके चलते पाठक को लगेगा कि ये सब बेचैनी तो मेरी अपनी है. जिसमें तन और मन दो अलग-अलग दिशाओं में भटकता रहता है. हर तरफ रास्ते दिखाई देते ,किसी एक का चुनाव बड़ा मुश्किल है. कभी इतिहास में स्वंय को ढूंढता तो कभी वर्तमान में . एक व्यक्ति की अन्तस्थ चेतना में चल रहे द्वंद्व को कवि ने इस प्रकार प्रकट किया है –
खोज रहा हूँ खुद को अंदर ही अंदर
मिलता है एक रावण कई बार
छल कपट की माया से
छलता है कई बार मुझे …
आज शहर और गाँव का मिजाज धीरे-धीरे बदल रहा है. सुनियोजित तरीके से भाई चारे को खत्म करने की कोशिश की जा रही. जिस भाईचारे को इतिहास में दफन करने की जो नाकाम कोशिश की जा रही है उसे रौशन करने की जिम्मेदारी कवि लेता है और कविताओं में स्वयं को रखकर सृजनकर्म करता है. कभी वह कविता बन जाता हैं, तो कभी राम, तो कभी रावण, तो कभी सामान्य व्यक्ति, हर कविता में कवि खुद नजर आता है, जैसे – फिल्म देखते समय दर्शक नायक में अपना प्रतिबिम्ब देखने की कोशिश करता है उसी प्रकार कवि भी उसी प्रक्रिया को अपनाता है–
कर्ज बहुत है इस छोटे से किसान पर
एक कवि की तरह
जो समाज की चिंता में डूबा
रातभर जागता है ...
इस बार हर बार से ज्यादा किया
कर्ज को खंडहर से बाहर निकलना चाहा
आज फिर से वही किसान है
जो कवि की तरह चिंता में डूबा
चिंता ग्रस्त.
‘बंजर जमीन’, ‘दलित’और ‘मजदूबराबरी र चौक’ जैसी कविताएँ समाज की सामाजिक, आर्थिक गैर बराबरी शोषण उत्पीड़न की मार्मिक व्यथा को प्रस्तुत करने में सफल रहे. तीनों ही कविताओं में स्वयं से और समाज से सीधे संवाद करते हैं ‘मिट्टी का साहित्य’ संग्रह की कविताओं को जैसे-जैसे पढ़ते जायेंगे वैसे –वैसे कविताओं का फलक विस्तार लेना शुरू कर देता है. कवि की आँखों के सामने धरती लुट रही है तो उन्हें दुःख होता है.लेकिन इस धरती को बचाने के लिए वे किसी अवतार का इंतजार नहीं करते और स्वंय पहल करते हैं –
लुट रही है धरा धरोहर
मेरी आँखों के समन्दर......
पता नहीं कौन-सा अवतार होगा
सबकुछ बचाने के लिए
चलो कोई शुरुआत करें हम तब तक
धरती के कुछ बचे हुए जेवर बचाने के लिए
‘कुछ-कुछ याद है’ कविता ने व्यक्तिगत तौर पर मुझे बहुत प्रभावित किया. उसमे गाँव की झलक, मिट्टी की महक, कविता का सौन्दर्य, जीवन दर्शन छिपा हुआ है.युवा कवि लव कुमार की कविताएँ व्यक्ति के अपने अंतर्द्वंद्व तक पहुंचता है. चूँकि भारत के ज्यादातर साहित्यकार शहरी जीवन का प्रतिनिधित्व करते दिखाई देते हैं वही लवकुमार ग्रामीण जीवन अभिव्यक्ति को परवाज देने में सफल हो जाते हैं
लेखक : लव कुमार लव / प्रकाशक: आधार प्रकाशन/ कीमत :150