"कविता बिना किसी कहानी के नहीं होती, हर कविता में एक कहानी छुपी होती है जो असल में जननी होती है उस कविता की"- ये कहना है "ज़िन्दगी की गुल्लक" की रचयिता मनीषा श्री का ।
अयान प्रकाशन से प्रकाशित "ज़िन्दगी की गुल्लक" अपने आप में एक अनोखी रचना है। इसे कविता संग्रह कहें, कहानी और कविता का संगम कहें, या फिर भावनाओं के धागे में पिरोए कुछ शब्द, समझ नहीं आता। खैर, इसे जो चाहे कह लीजिए, ये पुस्तक कहीं ना कहीं आपके हृदय को स्पर्श करती हुई दिखाई देगी। इस पुस्तक में कुल 21 कविताएँ हैं और हर कविता से पहले उसकी एक कहानी। प्रत्येक कविता कवयित्री के जीवन से जुड़ी घटनाओं पर आधारित है जैसे आई.आई.टी में चयन, नौकरी से संबंधित असमंजस, शादी, मातृत्व सुख का एहसास एवं छोटे बड़े जीवन के और भी घटनाएँ।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है की यद्यपि कविताएँ कवयित्री ने अपने जीवन को केन्द्र बना कर लिखी हैं, किंतु कहीं न कहीं इसमे संजोए भाव हम सबको बाँधे रखते हैं। पाठक निश्चित रूप से इन कविताओं में खुद की ज़िंदगी की झलक पाएगा। कविता प्रायः मुक्त छन्द में है किंतु उनमे एक प्रवाह है। कविताओं में अनेक प्रकार के भाव विद्यमान हैं जो जीवन के अलग अलग पड़ाव को दर्शाते से जान पड़ते हैं ।
इन कविताओं में कभी तो कवयित्री चलते रहने का संदेश देती हैं"
" हारना
ग़लत नहीं होता,
रुकना
ग़लत नहीं होता
इंसान का लड़-लड़ कर,
थोड़ा सुस्ता लेना
ग़लत नहीं होता"
और कभी खुद जीवन से बात करती हुई दिख जाती हैं:
"ज़िंदगी
न तूने मुझे एक पल जीने दिया
न चैन से मरने दिया
तूने तो खूब खेल खेला मेरे साथ
पर मुझे एक बार भी,
खेल कर
हराने तक का मौका न दिया"
तो कहीं जीवन के मायने तलाश करने में जुट जाती हैं:
"मैं
एक चंचल नदी हूँ,
सागर से मिलना मेरी नियती है,
पर मिलने से पहले
मैं
बहना चाहती हूँ
अपने रास्ते पर
अकेले चलना चाहती हूँ"
कुल मिलकर पुस्तक आपको ऐसे सफ़र पर ले जाती है जहाँ आप बीती ज़िंदगी के कई लम्हों से अपने आप को रूबरू पाते हैं।
अगर पुस्तक की कुछ कमियों की बात करें तो सबसे पहले जो चीज़ सामने आती है वो है कवयित्री का लेखन क्षेत्र में अनुभव-आभाव। चुकी ये मनीषा जी की पहली पुस्तक है तो ये आभाव झलकना लाज़मी भी है। कविताएँ प्रभावित तो करती हैं, किंतु दिल को इतना नहीं छू पाती की आप जाने अंजाने कविता को गुनगुनाते रहें। किंतु इस पुस्तक की शैली और एक ही बात को कहानी व कविता में कहने का अंदाज़( जो कम से कम मैने पहली बार देखा है) इस पुस्तक की कमियों को( जो थोड़े बहुत हैं) को पूर्णतः ढक देती है।
हमारी सिफारिश है की आप भी इस पुस्तक को पढ़ें एवं इसके बारे में अपनी राय हमें बताए। साहित्य मंजरी मनीषा श्री की लेखन क्षेत्र में सफलताओं की कामना करती है एवं उनसे आगे भी हमसे जुड़े रहने की गुज़ारिश करती है।
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