ये नज़्म उस रात की है जिस रात कई किसानों ने बेमौसम बारिश के सदमे से दम तोड़ दिया
गैर महफूज़ जिंदगियों का अफ़साना कि कोई क्या कहे
कि आज कुदरत का नया है तराना कि कोई क्या कहे
कि आज बड़ी देर तक चिड़ियों की याद आती रही
आज हाथ से छूटा है पैमाना कि कोई क्या कहे
कि कहीं कोई बिलख रहा होगा अपनी चहारदीवारी में
किसी का लुट गया होगा जमाना कि कोई क्या कहे
कि क्यूँ इतना बेखुद हो गया है ऊपरवाला हम से
नहीं देखता अपना बिखरता खज़ाना कि कोई क्या कहे
गलतियां हैं, आखिर इंसानों से ही हुआ करती हैं
करे गौर, ये उसका खुद का है घराना कि कोई क्या कहे
कहीं सुना नहीं कि कोई बेटों का भी क़त्ल करता है
कोई जब मिलने जाना तो कह आना कि कोई क्या कहे