चलती है साँस मगर मैं इक लाश हूँ |
अपनी ज़िंदगी से जैसे मैं उदास हूँ ||
अपने ही साये से डर लगने लगा है,,,
इतना डरा हूँ के ख़ुद से मैं हताश हूँ ||
करता गया हर काम इबादत मान के,,,
ठोकर लगी तो जाना के मैं निराश हूँ ||
सारा समंदर पास मेरे पड़ा है सामने,,,,
बुझती नहीं फिर भी कभी वो प्यास हूँ ||
लाश है वो जिस जीवन में आस नहीं,,,
ना हो ख़तम आस कभी मैं वो आस हूँ ||
चलता हुआ राहों पे मैं राही अकेला,,,,
मंज़िल है दूर बहुत अब टूटती साँस हूँ ||
खींचता है कोई "जैहिंद" लगता है ऐसा,,,
जीवन से बहुत दूर अब मौत के पास हूँ ||