चलती है साँस मगर मैं इक लाश हूँ

चलती है साँस मगर मैं इक लाश हूँ |
अपनी ज़िंदगी से जैसे मैं उदास हूँ ||

अपने ही साये से डर लगने लगा है,,,
इतना डरा हूँ के ख़ुद से मैं हताश हूँ ||

करता गया हर काम इबादत मान के,,,
ठोकर लगी तो जाना के मैं निराश हूँ ||

सारा समंदर पास मेरे पड़ा है सामने,,,,
बुझती नहीं फिर भी कभी वो प्यास हूँ ||

लाश है वो जिस जीवन में आस नहीं,,,
ना हो ख़तम आस कभी मैं वो आस हूँ ||

चलता हुआ राहों पे मैं राही अकेला,,,,
मंज़िल है दूर बहुत अब टूटती साँस हूँ ||

खींचता है कोई "जैहिंद" लगता है ऐसा,,,
जीवन से बहुत दूर अब मौत के पास हूँ ||


तारीख: 18.06.2017                                    दिनेश एल० जैहिंद






रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है