फिर शाम ढलने को है |
कुछ ख़्वाब पलने को है ||
ये तेरी याद ही है,
जो मुझे रंगने को है ||
दिन भर जला परवाना,
और शहर चलने को है ||
लौट आओ, इंतज़ार में
अब आँख थकने को है ||
रात दुल्हन बनने को है,
चाँद-तारे सजने को है ||
तु देकर तो देख, दिल,
हर दर्द सहने को है ||
शब्द-सागर से ‘माही’,
फिर भाव भरने को है ||