फिर शाम ढलने को है

फिर शाम ढलने को है |
कुछ ख़्वाब पलने को है ||

ये तेरी याद ही है,
जो  मुझे  रंगने  को है ||

दिन भर जला परवाना,
और शहर चलने को है ||

लौट आओ, इंतज़ार में
अब आँख थकने को है ||

रात दुल्हन बनने को है,
चाँद-तारे सजने को है ||

तु देकर तो देख, दिल,
हर  दर्द  सहने  को है ||

शब्द-सागर से ‘माही’,
फिर भाव भरने को है ||


तारीख: 19.06.2017                                    महेश कुमार कुलदीप






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