कभी मैं भी आजमाऊंगा आपनी तकदीर ज़माने में
अभी मशरूफ है तकदीर मुझे आजमाने में
किरदार तो कई आये पर कोई तुमसा अदाकार न था
ज़िक्र होगा इसका मेरी जिंदगी फ़साने में
आसान लगता था कभी वो जो इश्क का सफ़र
कितने थक गए हैं इतनी सी दूर आने में
ये खामोशी मेरे दिल की सुन न ले कोई
तकिये से मुह दबा के सोता हूँ सिराहने में
तू हो गया जुदा तो अब महसूस होता अक्सर
कई रिश्ते छूट रहे थे एक वफ़ा निभाने में
चलो छोड़ो भी ‘मुंतज़िर’ ये बेकार की बातें
पयमाना राह देखता होगा मेरी मयखाने में