जीवन को हरा बनाने दो | रिश्तों की पौध उगाने दो ||
अमरबेल से शहर हो गए, मरने से गाँव बचाने दो ||
जात–पात, वर्ण–व्यवस्था, है खरपतवार हटाने दो ||
मरुस्थल सी हुई हर छाती, भावों की नहर बहाने दो ||
दुख की झाड़ हटाकर ‘माही’, अब सुख के बाग लगाने दो ||
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