
ग़ज़ल इस बात पर चिंतन करती है कि कैसे हम अपने दैनिक जीवन में स्वस्थ और लंबी आयु पाने के लिए अनवरत प्रयास करते हैं। हम पौष्टिक भोजन खाते हैं, व्यायाम करते हैं, बुरी आदतों से बचते हैं, और भविष्य के लिए योजनाएँ बनाते हैं। हम हर छोटी-बड़ी बात का ध्यान रखते हैं ताकि जीवन को सुरक्षित और सुखमय बना सकें। किंतु, जब हम समाचारों में देखते हैं कि किस प्रकार पलक झपकते ही, बिना किसी चेतावनी के, सैकड़ों-हज़ारों लोग इन आकस्मिक दुर्घटनाओं में काल के गाल में समा जाते हैं, तो मन में एक गहरा प्रश्न उठता है: क्या हमारे ये सारे प्रयास व्यर्थ हैं? क्या स्वस्थ रहने और लंबा जीने की यह ज़द्दोजहद बेमानी है जब मृत्यु इतनी अप्रत्याशित और क्रूर रूप में आ सकती है?
अजब कशमकश है, अजब है ये जहान,
जीने की चाहत है, मौत भी आसान है।
कम खाऊँ, कसरत करूँ, उम्र बढ़े मेरी,
इक पल में सब ख़त्म, कैसा ये इम्तिहान है।
गाड़ी में, रेल में, या हवा में उड़ते हुए,
इक ख़बर आती है, कि अब नहीं ये इंसान है।
दहशतगर्दी है, जंग है, कहीं भगदड़ मची,
पल भर में मिट जाए, कैसा ये जहान है।
दिल कहता है जी भर के जी ले, हर पल का मज़ा ले,
क्या पता अगले पल, कहाँ ये जान है।
तो क्या अब जियूँ बेपरवाह, खाऊँ पियूँ जी भर ?
जब मौत आती है, तो फिर क्या नुकसान है